तरावीह में क्या नियत करना ज़रूरी है, नियत कैसे करें? सेहरी में नहीं उठ सके तो क्या रोज़ा रखना ज़रूरी है?

तरावीह में क्या नियत करना ज़रूरी है, नियत कैसे करें? सेहरी में नहीं उठ सके तो क्या रोज़ा रखना ज़रूरी है?
कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की अल-शरिया हेल्पलाइन से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न  :-तरावीह में क्या नियत करना ज़रूरी है, तरावीह में नियत कैसे की जाये ?
उत्तर :- तरावीह में नियत ज़रूरी ह,ै कोई भी नमाज़ होगी उसके लिये नियत करना ज़रूरी है लेकिन तरावीह चूंकि सुन्नत नमाज़ है, लिहाज़ा मुतलक़ नमाज़ की नियत भी काफी है। नियत में कोई शब्द ज़बान से कहना ज़रूरी नहीं है बल्कि सिर्फ दिल में नियत कर ली है तो वह भी सही है और हर दो रकअत पर नियत अलग-अलग करना भी ज़रूरी नहीं, शुरू में यह नियत काफी है कि मैं बीस रकअत तरावीह पढ़ रहा हूं।।

प्रश्न :- तरावीह की 18 रकअत पर भूल हो गई उसको 20 समझ कर वित्र पढ़ ली गई बाद में ख्याल आया कि तरावही 18 ही रकअत पढ़ी गई है तो फिर वि. पढ़ लेने के बाद छूटी हुई दो रकअत जमाअत से पढ़े या अकेले पढ़ें या अब नहीं पढ़ना है?
उत्तर :- बीस रकअत तरावही सुन्नते मुअक्किदा है लिहाज़ा दो रकअत जो रह गई उसको वित्र के बाद अगर सब लोग मौजूद हैं तो जमाअत से वरना अकेले पढ़ लें ताकि बीस रकआत पूरी हो जायें।

प्रश्न :- सेहरी में नहीं उठ सके तो क्या रोज़ा रखना ज़रूरी है ?
उत्तर :-रोज़ा रखना फ़र्ज़ है उसके लिये सेहरी करनस सुन्नत है लेकिन अगर किसी वजह से सेहरी नहीं कर सके तो भी रोज़ा छोड़ना जायज़ नहीं बग़ैर सेहरी के भी रोज़ा रखना ज़रूरी है।

प्रश्न  :- दो रकअत तरावीह में नहीं बैठे बल्कि तीसरी रकअत के लिये खड़े हो गये और आखिर में सज्दा सहू कर लिया तो नमाज़ हुई या नहीं ?
उत्तर :-  क़ायदह अखीरह होने की वजह से दो रकअत पर बैठना फर्ज़ था, लिहाज़ा जब बगै़र क़अदह अखीरह किये तीसरी रकअत में वह खड़े हो गये तो उनको वापस आ जाना लाज़िम था, अब जबकि वह वापस नहीं हुये तो नमाज़ फासिद हो गई तीसरी रकअत पूरी करके सज्दा सहू करने से भी नमाज़ दुरुस्त नहीं होगी यह दो रकअतें दोहराना होंगी ।

प्रश्न  :- मुझे फज्र की नमाज़ के बाद उल्टी हो गई तो मैं रोज़ा रखूं या नहीं ?
उत्तर :- उल्टी होने से रोज़ा नहीं टूटता इसलिये आपका रोज़ा बाक़ी है , आपको इसे पूरा करना लाज़मी है।

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