यूपी......में काबा? देवबंद में सपा की हार और प्रदेश में बीजेपी की प्रचंड जीत: समीक्ष-कमल देवबंदी।

यूपी......में काबा? देवबंद में सपा की हार और प्रदेश में बीजेपी की प्रचंड जीत: समीक्ष-कमल देवबंदी।
उत्तर प्रदेश सहित 5 प्रदेश के चुनाव समाप्त हो चुके हैं--नतीजे आ गए---उम्मीद के मुताबिक़---कुछ नया नही----वो ही जिसकी उम्मीद थी।
उसके बाद तबसरों, तजज़ियों का दौर शुरू हुआ---अखिलेश, ओवैसी, मुसलमान---पर इल्ज़ामात---मौत-ज़िंदगी, कामयाबी-नाकामी---सब तक़दीर के साथ-साथ तदबीर के खेल हैं। हमारे यहां तदबीर है ही नही----फिर कामयाबी-नाकामी पर तबसरे कैसे।
सिर्फ देवबन्द की बात करूं तो---माह सितम्बर 2021 से कुछ हिन्दू महिलाएं संडे के दिन घर-घर जाकर वोट बेदारी मुहिम के तहत वोट बना रहीं थी----नवंबर 2021 से जनवरी 2022 तक मुस्लिम इलाक़ों में बूथ पर कोई मुस्लिम सभासद, चेयरमैन, लीडर, समाजसेवी आकर नही फटका-----जम्हूरियत में मौक़ा सबके लिए है----उन्होंने भुनाया----आपने गंवाया।।
------चुनाव से 4 रोज़ पहले सपा प्रतियाशी देवबन्द में एक साहब के पास रात के अंधेरे में गए----वोट की अपील की---उन्होंने कहा"इस बार मुसलमान ज़लील होकर तुम्हे वोट दे रहा है। तुम दलित वोट पर मेहनत करो"। चुनाव के बाद एक सपा समर्थक से में मिला मैंने पूछा "हिन्दू वोट कितना मिला। उसने 10 हज़ार बताया। मैंने कहा "तुम नही जीतने के"। वही हुआ लगभग 20 राउंड तक बसपा आगे रही। जब मुस्लिम इलाके आए सपा ने उछाल लिया।
जब चुनाव की घोषणा हुई तो देवबन्द के एक साहब ने जो सपा के हक़ में थे। उन्होंने BJP के दो ठाकुर बिरादरी के बड़े लोगों से देवबन्द में उनकी मुलाकात कार्तिकेय राणा की बहन प्रियम्वदा से तय कराई। मगर वो नही आईं। पता चला वो मस्जिदे रशीद पर रेहड़ी-रिक्शा वालों से वोट मांग रहीं हैं। उन साहब्ज़ादी को शख़्स और शख़्सियत तक पता नही था।
देवबन्द विधानसभा सीट पर सपा को उनके ही गांव भायला के ही वोट नही मिले।
देवबन्द में एक हिन्दू साहब हैं----गत कई माह से सख़्त बीमार हैं। चलने से मजबूर हैं इन दिनों। मगर वो बज़िद थे bjp को वोट देने के लिए और उन्होंने दिया।
---------में अगली बात शुरू करने से पहले यह बता दूं। मेरा किसी सियासी जमात या सियासी शख़्सियत से कोई दिली या ज़ेहनी लगाव नही----हाँ। सियासत से दिलचस्पी ज़रूर है।
आज लोग अखिलेश की आलोचना कर रहे हैं---मगर प्रश्न यह है कि आपके पास हल क्या है। अखिलेश को आपने वोट दिया (ख़ुद से,बगैर मांगे) उनकी सीट्स बढ़ गयीं---वोट औसत बढ़ गया। 34 MLA मुस्लिम आ गए। इसको पॉजिटिव लो। क्या हम किसी दूसरी जमाअत के साथ----या किसी मुस्लिम चेहरे के साथ। अपने वोट के बल पर यह कर पाते-----शायद नही।फिर 124 MLA और उनमें से 34 मुस्लिम MLA में से भले की उम्मीद करें कि वो आपकी विधानसभा में आपके अधिकारों की लड़ाई लड़ेंगे।
 जनपद सहारनपुर में उमर अली खान और आशु मलिक की भूमिका और जवाबदेही तय करें।
--------ज़रा आंकलन करें---अपने मुस्लिम MP हाजी फजलुर्रहमान का----कोई कारनामा है---जनपद में इनका, देवबन्द जैसे शहर में एक ईंट उनकी रक्खी हुई दिखाई नही देती। दारुल उलूम, वक़्फ़ दारुल उलूम, ईदगाह रोड ख़स्ता हाल हैं----मगर उनको ख़्याल तक नही आता। चंद पत्रकार दोस्त हैं उनके----जो सरकार की आलोचना के उनके ब्यानात को प्राथमिकता देते हैं----मगर उनकी समीक्षा नही करते--------आलोचना, समालोचना---सियासत का हिस्सा है----हमे यह सबक़ उमर अली खान और आशु मलिक को याद दिलाते रहना होगा।
 श्रीमती इंद्रा गांधी की हत्या के बाद----संसद में bjp के दो सांसद रह गए थे। श्री अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी----मगर वो संसद छोड़कर भागे नही थे। वो कॉंग्रेस के सांसदों के बीच डटे रहे थे----1985 से 2022 तक संसद की तस्वीर बदल दी---उन दो के प्रयास ने।
---------ज़रा 1947 से पहले की तरफ चलिए-----हमारे बड़े बज़ुर्ग----लोकतंत्र के एक ख़ौफ़नाक और डरावने रूप को देख रहे थे----जहां एक भीड़,भेड़िये की शक्ल में इंसानों को निगलने का काम करेगी---वो मंज़र सामने है। मौलाना अशरफ अली थानवी रह."काले भारतीयों के मुक़ाबले गोरे अंग्रेजों के पक्षधर थे"। एक पढ़ा-लिखा तबक़ा एक अलग देश का पक्षधर था।
बहरहाल। जो हुआ सो हुआ-----वो लोग जो जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर खड़े होकर कह रहे थे---कि तुम्हे गंगा-जमना आवाज़ दे रही है----उनकी नस्ल के भी पता नही। कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की नस्लें----अपने बुजुर्गों की कुर्बानियों का गोश्त अब तक खा रहे हैं।
नोएडा से एक बार फिर गोश्त की दुकानें और मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतारने की आवाजें आ रही हैं----जानकार कहते हैं और बज़ुर्ग बताते हैं कि 1947 से पहले इन्ही के बड़े अंग्रेजों के साथ मिलकर---हमारे बड़ों को कारोबार में नुक़सान पोहंचाते थे। इसमे कोई शक नही के 1947 और फिर 1992 के बाद मुस्लिम क़यादत (ख़ासतौर से कठ मुल्लाओं) ने बड़ा नुकसान दिया।
           एक बार राजीव गाँधी ने कहा था"अपनी सुरक्षा-आप कीजिये"। बस-------आप भी इल्म से, अमल से, सोच से, फिक्र से, हालात के मुताबिक़ चल के, बहस, आलोचना को छोड़कर अपनी सुरक्षा कीजिये। अपनी सफों में एकजुटता पैदा कीजिये------मुसलमानों को ज़ात की जंजीर तोड़नी होगी-----दलित-स्वर्ण का फर्क़ ख़त्म हो रहा है---दलित---bjp की नय्या पार लगा रहे हैं।

कमल देवबंदी (वरिष्ठ लेखक, समीक्षक)

(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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