किसी भी पार्टी से गठबंधन ना होने पर अलग-थलग पड़े ओवैसी क्या कर सकेंगे यूपी की सियासत में कोई कमाल।
हैदराबाद की पॉलिटिक्स से बाहर कई राज्यों में पांव जमाने का प्रयास कर रहे एमआईएम चीफ ओवैसी किसी के लिए राष्ट्रीय स्तर के नेता की हैसियत रखते हैं तो कोई उनको मुस्लिम वोटों को बांटने वाला बताता है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओवैसी को समाजवादी पार्टी का एजेंट बताया था तो वहीं ऐसे लोगों की भारी तादाद हैं जो ओवैसी को भाजपा का एजेंट बताते नहीं थकते और आरोप लगाते हैं कि ओवेसी चुनावी मैदान में सिर्फ और सिर्फ भाजपा को फायदा पहुंचाने और दूसरी पार्टियों को नुकसान पहुंचाने के लिए उतरते हैं. उदाहरण के लिए वह पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार की मिसाल सामने रखते हुए कहते हैं कि यहां पर असदुद्दीन ओवैसी ने सिर्फ इसलिए चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार उतारे थे कि यहां पर वह भाजपा के हक में माहौल बना सकें. बिहार में तो ओवैसी ने पांच सीटे जीतकर तेजस्वी यादव का राजनीतिक खेल बिगाड़ दिया था लेकिन पश्चिम बंगाल में वो ऐसा करने में नाकाम रहे थे।
इस बार ओवैसी यूपी में ऐसा करने जा रहे हैं और उन्होंने यहां पर 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है हालांकि ओवैसी का अभी तक किसी से गठबंधन नहीं हो सका है और जिन राजनीतिक दलों से वह गठबंधन करना चाहते हैं वह सभी ओवैसी से बचते हुए नजर आ रहे हैं. बल्कि उन्होंने साफ कर दिया है कि उनका गठबंधन किसी भी पार्टी से हो सकता है लेकिन वह ओवैसी से हाथ मिलाने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम समाजवादी पार्टी का शामिल है जिससे गठबंधन की अटकलें तेज थी लेकिन अब यह साफ हो चुका है कि सपा किसी भी तरह से ओवैसी से गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं है हालांकि वह ओवैसी के गठबंधन सहयोगी रहे ओमप्रकाश राजभर से हाथ मिला चुकी है।
जाहिर सी बात है कि राजनीतिक दल ओवैसी में नफा नुकसान तलाश रहे हैं लेकिन वह गठबंधन करने के बिल्कुल भी मूड में नहीं हैं. दरअसल जिस तरह की पॉलिटिक्स ओवैसी करते हैं उसकी वजह से उनसे गठबंधन करके किसी भी तरह का नुकसान ना हो यही सोचकर राजनीतिक पार्टियां उनसे दूरी बना रही हैं. जिससे यूपी की सियासी पिच पर ओवैसी पूरी तरह से अलग-थलग पड़ते हुए फिलहाल नजर आ रहे हैं।
यूपी में राजनीतिक खेल बिगाड़ सकते हैं ओवैसी?
हालांकि एमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी जज्बाती भाषणों के जरिए मुस्लिम वोटों पर डोरे डालने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं. लेकिन उनकी यह कोशिश क्या वास्तव में कामयाब हो सकेगी इसके बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन इतना जरूर है कि जिस तरह से बिहार में ओवैसी ने सिर्फ 5 सीटें जरूर जीती थी लेकिन वहां पर उन्होंने तेजस्वी यादव का राजनीतिक खेल बिगाड़ दिया था तो यूपी में भी वो ऐसा कर सकते हैं और इस बारे में ओवैसी ने चंद दिन पहले एक बयान में कहा भी था कि हमने बिहार में तेजस्वी यादव से बात करने की काफी कोशिश की लेकिन उन्होंने हमें अहमियत नहीं दी काश उन्होंने अगर हमारी बात सुन ली होती तो आज वह विपक्ष में नहीं होते बल्कि तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री होते.जाहिर सी बात है कि ओवैसी का इशारा किस तरफ है।
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