सुलतान जहां के सम्मान आयोजित मुशायरे में कलाम पेश करके शायरों ने बांधा समां।

सुलतान जहां के सम्मान आयोजित मुशायरे में कलाम पेश करके शायरों ने बांधा समां।

देवबंद: बरेली की शायरा सुलतान जहां के सम्मान में मोहल्ला बड़जियाउलहक पर मुशायरे का आयोजन किया गया। इसमें शायरों ने सुंदर कलाम सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही लूटी।
मुशायरे का आगाज नफीस खलीफा की नाते पाक से हुआ। मेहमान शायरा सुलतान जहां ने कुछ यूं कहा 'मेरे मुंसिफ मेरे रहबर तू अब तो फैसला कर दे, खिताबे बावफा दे दे या साबित बेवफा कर दे
वसीम राज्जूपुरी का अंदाजे बयां कुछ यूं था 'देखों कभी उम्मीद का दामन न छोडऩा, बेटी खुदा ने दी है तो रिश्ता भी आएगा
 मंसूर राना ने पढ़ा 'मैं चेहरा देखकर मां की तबीयत जान जाता हूं, जरा सी बात भी उसकी खुशी से मान जाता हूं
डा. काशिफ अख्तर ने सुनाया 'जुल्फे जाना से क्या मोहब्बत हो, मुझको शमशीर से मोहब्बत है
वली वक्कास ने पढ़ा 'शाम भी याद भी तन्हाई भी ओर आंसू भी, मेरे हिस्से में सिमट आया है हर बात का दुख
चांद अंसारी के इस शेर 'अदब की दौड़ में आगे निकल रहा हूं, मैं ना जाने कितने ही लोगों को खल रहा हूं, ने श्रोताओं की जमकर दाद बटोरी। 
इनके अलावा जाहिद देवबंदी, नफीस खलीफा, सुहेल देवबंदी, कामरान खतौलवी ने भी अपने कलाम पेश किए। अध्यक्षता डा. यूनुस सिद्दीकी व संचालन गुलजार जिगर ने किया। दिलशाद गौड़, रिजवान, गुफरान, पप्पू, शाहवेज, नौशाद, साहिल, नईम प्रधान, मोनिश, नबील उस्मानी, मोहम्मद कलीम आदि मौजूद रहे।

Post a Comment

0 Comments

देश