देवबंद: एसीजेएम (अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) परविंदर सिंह की अदालत ने मंगलवार को 1993 में देवबंद में हुए बम धमाके के मामले में नज़ीर अहमद वानी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। यह फैसला उस मुकदमे में आया, जिसकी सुनवाई अदालत में करीब 31 वर्षों तक चली, लेकिन अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर सका।
बता दें कि 1992 में बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद 1993 में देवबंद के यूनियन तिराहे पर एक जोरदार बम धमाका हुआ था, जिसमें दो पुलिसकर्मियों सहित छह लोग घायल हो गए थे। इस मामले में पुलिस ने कश्मीर के बडगाम जिले के निवासी नज़ीर अहमद वानी के खिलाफ मुकदमा संख्या 265/1994 दर्ज किया था। आरोपों में भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468 और 471 लगाई गईं और वानी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। कुछ समय बाद अदालत से उसे ज़मानत मिल गई थी।
हालांकि, वानी लंबे समय तक अदालत में पेश नहीं हो रहा था, जिस पर एसीजेएम कोर्ट ने नवंबर 2024 में उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिए। इसके बाद पुलिस और एटीएस ने कार्रवाई करते हुए वानी को कश्मीर से गिरफ्तार किया। पुलिस ने वानी को हिजबुल आतंकी बताते हुए उसकी गिरफ्तारी को बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया। लेकिन जनवरी 2025 में उसे दोबारा ज़मानत मिल गई।
करीब 31 वर्षों तक मामले की सुनवाई चलती रही, मगर इस दौरान अभियोजन पक्ष वानी के खिलाफ अदालत में कोई निर्णायक सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका। अंततः मंगलवार को अदालत ने सबूतों के अभाव में नज़ीर अहमद वानी को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया और बाइज़्जत बरी कर दिया।
समीर चौधरी।
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