नहीं रहे इलाके के मशहूर बुजुर्ग हाफिज रफीक अहमद (नाबीना), 85 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस, गमगीन माहौल में गांव के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक।

सहारनपुर, बेहट: बेहट तहसील क्षेत्र के धौलाकुआं गांव निवासी मशहूर बुजुर्ग और आशिक-ए-कुरान हाफिज रफीक अहमद (नाबीना) का बीमारी के चलते बुधवार की दोपहर करीब 12:00 बजे अपने आवास पर इंतकाल हो गया है, उनके निधन की खबर से क्षेत्र का माहौल गमगीन हो गया। बड़ी संख्या में लोग उनकी नमाजे जनाजा में शामिल हुए। 

बेहट-सुंदरपुर मार्ग पर स्थित धौलाकुआं गांव निवासी हाफिज रफीक अहमद करीब 85 वर्ष के थे, वह बचपन से ही दोनों आंखों से महरूम थे, मरहूम के जीवन का बड़ा हिस्सा कुरान पाक पढ़ने और पढाने में गुजरा है, गांव की पुरानी मस्जिद में उनका कुरान पाक सुनने और सुनाने का एक लंबा इतिहास (करीब 60 साल) रहा है, वह इलाके में बहुत मशहूर हाफिज-ए-कुरान के तौर पर प्रसिद्ध थे, आशिक-ए-कुरान होने के कारण उन्हें लोग बहुत प्यार और सम्मान करते थे और उनसे दुआएं कराते थे, मरहूम हाफिज रफीक अहमद रोजाना तहज्जुद की नमाज में कुरान पाक के कई-कई पारे पढ़ते थे, इतना ही नहीं बल्कि वह चलते-फिरते भी कुरान पाक पढ़ते रहते थे, यही कारण है कि बड़े-बड़े हाफिज-ए-कुरान भी उनके सामने तरावीह की नमाज में कुरान पाक सुनाने में हिचकते थे, हाफिज रफीक अहमद रूहानी इलाज भी करते थे जिसकी वजह से दूर-दूर से लोग उनसे दुआएं कराने और इलाज कराने आते थे, शुगर के मरीजों के लिए उनका सेब पढ़ कर देना बहुत मशहूर था, उनके आवास पर सभी धर्मों के लोगों का तांता लगा रहता था जो उनसे दुआएं कराने आते थे।
बुधवार को अचानक उनके निधन से पूरा गांव में शोक की लहर दौड़ गई और गांव का माहौल गमगीन हो गया। असर की नमाज के बाद उनके जनाजे की नमाज अदा की गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए, उसके बाद ग़मगीन माहौल में गांव के पैतृक कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्द ए खाक कर दिया गया। मरहूम हाफिज रफीक के इंतकाल पर विभिन्न मदरसों और मस्जिदों में कुरान ख्वानी करके उनके लिए दुआए मगफिरत की गई। मरहूम ने अपने पीछे दो बेटे और चार बेटियां छोड़ी हैं।

समीर चौधरी।

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