मदरसों के खिलाफ कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश बेंच ने सुनाया फैसला, जमीयत की एक और बड़ी उपलब्धि।

नई दिल्ली: जमीअत उलमा ए हिन्द के कानूनी संघर्ष के इतिहास में सोमवार को एक और बड़ी उपलब्धि शामिल हो गई। जब मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायाधीश जेपी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ ने विभिन्न राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए सभी नोटिसों पर रोक लगा दी। इस में कहा गया था कि इस अवधि के दौरान जब तक अदालत द्वारा अगला नोटिस जारी नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र सरकार द्वारा इस संबंध में कोई नोटिस या आदेश जारी किया जाएगा, राज्यों को चार हफ्ते के अंदर अपना पक्ष रखना होगा। अदालत ने बच्चों के अधिकारों से संबंधित राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की इस सिफ़ारिश पर भी रोक लगा दी जिसने इसमें केन्द्र और राज्यों से कहा कि हक़ तालीम एक्ट से मुताबिकत नहीं रखने वाले तमाम मदरसे बंद कर दिए जाएं।

गौरतलब है कि इस मामले में बच्चों के अधिकारों से संबंधित राष्ट्रीय बाल अयोग ने अदालत में एक हलफनामा भी दाखिल किया था जिसमें कहा गया यह कि मदरसों में बच्चों को मुनासिब तालीम नहीं दी जा रही है और ये बच्चों के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है। आगे ये भी कहा गया था कि मदरसों में बच्चों को न सिर्फ मुनासिब तालीम बल्कि सेहत मंद माहौल और इनको बेहतर पोषण से वंचित रखा जा रहा है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में मदरसों को जारी किए गए नोटिस में तथ्यों को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए तर्क दिया गया कि बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 के तहत, यदि मदरसा गैर-मान्यता प्राप्त है, तो उसे बंद कर दिया जाना चाहिए और छात्रों को स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए। निकटतम परिषद स्कूल में मदरसों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई, यहां तक कि कई मदरसों को जबरन बंद कर दिया गया, इस साजिश को विफल करने के लिए मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर जमीअत उलमा ए हिन्द ने 4 अक्टूबर 2024 को W.P.(C)No, 000660/2024 वाली एक महत्वपूर्ण याचिका दायर की। जिसमें इन सभी दावों को चुनौती दी गई थी, जिसमें वकील ऑन रिकॉर्ड फ़ुजैल अयूबी हैं जबकि वरिष्ठ वकील इंद्राजय सिंह मामले की पैरवी कर रहे हैं, इस याचिका पर कोर्ट ने संबंधित पक्षों से स्पष्टीकरण मांगा था और सोमवार को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टीकरण दे दिया है. मदरसों के खिलाफ सभी नोटिस और कार्यवाही पर रोक लगाते हुए केंद्र और राज्य को अपना पक्ष रखने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया।आज सुनवाई के दौरान सीनियर ऐडवोकेट इंद्राजय सिंह के अलावा कोई और वकील अदालत में पेश नहीं हुआ। जमीअत उलमा ए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि अंतिम फैसला भी मदरसों के पक्ष में होगा और संविधान के आदेशों का उल्लंघन करने वाली शक्तियों को मायूसी हाथ लगेगी। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताते हुए कहा कि देश के अल्पसंख्यकों को संविधान में जो विशेष अधिकार दिए गए थे, उन्हें अब छीनने की साजिश रची जा रही है।उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता प्राप्त है अनुच्छेद 25 के तहत और अनुच्छेद 26 के तहत अल्पसंख्यकों को उनके धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधन और नियंत्रण की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है। मौलाना मदनी ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों पर लागू नहीं होगा। साजिश का खुलासा करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि जो लोग मदरसों के खिलाफ यह सब कर रहे हैं, वे मदरसों के माहौल और भूमिका से अनभिज्ञ हैं। ऐसा कानून की धारा 1(5) में कहा गया है अधिनियम का कोई भी प्रावधान मदरसों, पाठशालाओं और ऐसे अन्य शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं है, वास्तव में, जमीअत उलमा-ए- हिन्द धार्मिक मदरसों की आवाज और दिमाग है, सांप्रदायिक शक्तियां इतिहास से भी असमर्थ हैं, ये मदरसे ही है जब पूरा देश सो रहा था तब देश को गुलामी से आजाद कराने के लिए किसने बिगुल बजाया, मौलाना मदनी ने आगे कहा कि इस साजिश को हराने और संविधान को बचाने के लिए ही हमने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, क्योंकि अगर यह साजिश सफल हो गई तो संविधान खत्म हो जाएगा इसकी स्थिति एक बेमायने किताब की तरह होगी। हम फिरकापरस्त ताकतों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि इस्लामिक मदरसे देश के संविधान और कानून के दायरे में रहकर अपना काम कर रहे हैं और उन्हीं की वजह से देश में इस्लाम का विकास भी हो रहा है और इस्लाम का सही पैगाम भी पहुंच रहा है। लेकिन दुर्भाग्य से मदरसों के संबंध में सांप्रदायिक मानसिकता की नीति मुसलमानों के लिए सभी प्रकार की समस्याओं का कारण बन रही है, जमीअत उलमा ए हिन्द अपने संवैधानिक और क़ानूनी हक का इस्तेमाल करते हुए अदालत गई और इस का बेहतर नतीजा सामने आया। तथा मदरसों के खिलाफ हो रही साजिशों के खिलाफ होने वाली षडयंत्रों पर रोक लग गई बल्कि हम तो यह कहेंगे कि भारत के संविधान और दस्तूर के खिलाफ जो लोग काम कर रहे थे इनकी मंशा और इरादा पर रोक लग गई है। उन्होंने कहा कि हम देश के संविधान की हिफाज़त के लिए लड़ रहे है इस लिए कि संविधान बचेगा तो ही देश बचेगा।अपने इसी नज़रिए की तकमील के लिए जमीअत उलमा ए हिन्द आने वाली 3 नवंबर को नई दिल्ली में एक बड़ा सम्मेलन "संविधान बचाओ कांफ्रेंस" का आयोजन करेगी।

समीर चौधरी।

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