भारत में समलैंगिक विवाह मंजूर नहीं, SC का मान्यता देने से इंकार, सभी याचिकाएं ख़ारिज, सुप्रीम फैसले का जमीयत अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने किया स्वागत।

देवबंद: जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर वैधता देने की अपील को खारिज किए जाने के फैसले का स्वागत किया है। मौलाना मदनी ने कहा कि अदालत के फैसले से विवाह की पवित्र व्यवस्था का संरक्षण हुआ है।

मंगलवार को जारी बयान में जमीयत अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि भारत एक प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वाला देश है, जो विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसे पश्चिमी दुनिया के स्वतंत्र विचारों वाले अभिजात्य वर्ग की मनमानी से कुचला नहीं जा सकता। मौलाना मदनी ने कहा कि न्यायालय ने इस फैसले से विवाह की पवित्र और शुद्ध व्यवस्था की रक्षा की है जैसा कि हमारे देश में सदियों से समझा और उसे आत्मसात किया जा रहा है। मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हम व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में अदालत के परिपक्व फैसले की सराहना करते हैं। 


गौरतलब है कि मगंलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर वैधता देने की अपील को खारिज कर दिया है। पांच न्यायधीशों पर आधारित पीठ ने अप्रैल और मई के बीच सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आज इस संबंध में फैसला सुनाया। जमीयत उलमा-ए-हिंद भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन इस मामले में एक पक्षकार है। जमीयत की ओर से प्रसिद्ध वकील कपिल ने सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से ठोस तर्क प्रस्तुत किए और आरंभिक चरण में ही अदालत को सहमत किया था कि ऐसी शादी की किसी भी धर्म में अनुमति नहीं है। इसलिए पर्सनल लॉ के अंतर्गत इसपर विचार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे में कोर्ट ने तय किया था कि इस शादी के बारे में बहस केवल स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगी। 
सिब्बल ने कहा था कि ऐसी शादियों के बुरे प्रभाव पड़ेंगे। यह मामला अन्य पारिवारिक कानूनों जैसे विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने और विभिन्न समुदायों के पर्सनल लॉ को भी प्रभावित करेगा। इस मामले में जमीअत के वकील कपिल सिब्बल को एडवोकेट एमआर शमशाद और एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी असिस्ट कर रहे थे। 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा दायर 18 से अधिक याचिकाओं के संयुक्त मामले पर सुनवाई कर रहा था जिसमें याचिकाकर्ताओं का कहना था कि शादी नहीं करने की वजह से वह ’दोयम दर्जे के नागरिक’ बन रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अप्रैल और मई में मामले की विस्तार से सुनवाई की। जनहित में अदालत की इस कार्यवाही का सीधा प्रसारण लाइव स्ट्रीम के माध्यम से किया गया। पांच जजों में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, रविंदर भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे।

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हम व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में अदालत के परिपक्व फैसले की सराहना करते हैं।

समीर चौधरी।

Post a Comment

0 Comments

देश