जयपुर-मुंबई ट्रेन घटना पर भड़के जमीयत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी, गृहमंत्री को भेजा पत्र, बोले ये फासीवाद व नरसंहार की मानसिकता की उपज, सख्त कार्रवाई की मांग।

देवबंद: जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने ट्रेन में आरपीएफ कांस्टेबल के द्वारा अपने वरिष्ठ एएसआई टीकाराम और तीन अन्य मुसलमानों की पहचान कर उनकी हत्या करने पर गहरा दुख और चिंता व्यक्त की है। मदनी ने घटना को फासीवाद और नरसंहार की मानसिकता की उपज बताते हुए इस संबंध में देश के गृहमंत्री को पत्र भी लिखा है। 

मंगलवार को मौलाना महमूद मदनी ने गृहमंत्री अमित शाह को भेजे पत्र में कहा कि यह कोई अलग-थलग कार्रवाई नहीं है बल्कि वर्षों से जारी नफरती अभियान का परिणाम है। जिसमें देश के सत्ताधारी राजनीतिक दल के नेता, मुख्यमंत्री, केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री और टीवी मीडिया भी समान रूप से भागीदार हैं। इन सभी ने देश में जो नफरत का बीज बोया है, उसका खामियाजा आज देश की मासूम जनता को जान देकर भुगतना पड़ रहा है। मौलाना मदनी ने कहा कि बार-बार धर्म संसदों और प्रदर्शनों में मुसलमानों के नरसंहार का नारा लगाने वाले खुद को आजाद और कानून से ऊपर समझ रहे हैं और उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई भी नहीं की जाती। जिस कारण वह अब पूरे हौसले के साथ ऐसे नरसंहार पर आधारित नारे लगा रहे हैं। इसी तरह टीवी मीडिया पर घृणा आधारित नारों के साथ कार्यक्रम आयोजित होते हैं। जबकि सत्तासीन जिम्मेदार लोग आंखें बंद किए हुए हैं। जिसका परिणाम है कि अब यह नारे चरितार्थ होते प्रतीत हो रहे हैं। मौलाना मदनी ने गृहमंत्री से देश में नफरत के वातावरण की समीक्षा करने तथा राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र की सेवा को अपनी प्राथमिकता मानते हुए कठोर कदम उठाएं और दंडात्मक कार्रवाई करने की मांग की। 

मौलाना महमूद मदनी ने बड़ा सवाल उठाते हुए कहा कि ट्रेन में लाखों की संख्या में लोग प्रतिदिन यात्रा करते है। उनकी जान-माल की सुरक्षा रेलवे की जिम्मेदारी है। लेकिन जब रेलवे के सुरक्षाकर्मी ही नफरत के जहरीले वातावरण से प्रभावित होकर निर्दोष यात्रियों पर गोली चलाएं तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है?। 

मौलाना महमूद मदनी ने राजनीतिक नेताओं से आग्रह किया है कि वह अपने प्रभाव और मंच का जिम्मेदारी के साथ उपयोग करे तथा नफरत भरे भाषण या विभाजनकारी विचारों को फैलाने से बचें। राजनीतिक स्वार्थ के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण न केवल नैतिक रूप से निंदनीय है बल्कि यह हमारे लोकतांत्रिक और विविधतापूर्व समाज की नींव को भी कमजोर करता है। 

समीर चौधरी।

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