UCC देश में अव्यवस्था और सामाजिक अशांति का कारण बनेगा, दारुल उलूम देवबंद ने विधि आयोग को पत्र लिखकर जताया समान नागरिक संहिता का विरोध।

देवबंद: विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने समान नागरिक संहिता को लेकर विधि आयोग को पत्र लिखकर यूसीसी का विरोध किया है और कहा है कि भारत जैसे विभिन्न संस्कृतियों वाले देश में समान नागरिक संहिता अव्यवस्था और सामाजिक अशांति का कारण बनेगा, भारत में यूसीसी की कोई जरूरत नहीं है और ये संविधान के भी खिलाफ़ है इसलिए इसको लागू किए जाने का इरादा तर्क करना चाहिए।

शुक्रवार को दारुल उलूम देवबंद के नायब मोहतमिम मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी द्वारा विधि आयोग को भेजे गए पत्र में दारुल उलूम देवबंद का पक्ष रखा और भारत में यूजीसी लागू किए जाने का विरोध किया। कहा कि समान नागरिक संहिता धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के विरुद्ध है। इससे पूर्व जमीअत उलमा हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड जैसे बड़े मुस्लिम संगठन भी विधि आयोग में अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं।
संस्था की ओर से विधि आयोग को भेजे गए पत्र में दारुल उलूम देवबंद की सेवाओं और आजादी में दिए गए उसक योगदान का हवाला दिया गया साथ ही कहा गया है कि भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है जिसमें समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह यहां अशांति का कारण बनेगा। पत्र में कहा गया है कि हमारा मानना ​​है कि भारत में सभी समुदायों के लिए एक समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यक नहीं है। समान नागरिक संहिता को लागू करने का मतलब यह होगा कि सभी व्यक्तिगत धार्मिक नियमों को दूर रखा जाएगा और विवाह, तलाक, विरासत आदि जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाला एक समान कानून होगा। जो संविधन के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक को दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ होगा। यह सामाजिक अव्यवस्था का कारण बनेगा, और यदि पूरे देश में एक समान नागरिक संहिता लागू की जाती है, तो यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए ज्यादा कठिनाई और सामाजिक अव्यवस्था का कारण बनेगी क्योंकि उनका व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन देश के बाकी लोगों से काफी अलग है। समान नागरिक संहिता विभाजनकारी साबित होगी और सामाजिक अशांति को जन्म देगी, यह संविधान की भावना के खिलाफ है, जो नागरिकों को उनकी संस्कृति और धर्म का पालन करने के अधिकार की रक्षा करती है।

उन्होंने कहा कि जबरदस्ती समान नागरिक संहिता लागू करने से समाज का ताना-बाना प्रभावित होगा इसलिए इसे लागू किए जाने का दारुल उलूम देवबंद विरोध करता है, सरकार और विधि आयोग को इस को देश में लागू करने का इरादा तर्क करना चाहिए। संस्था इसे अनावश्यक और मौलिक संवैधानिक अधिकारों के विपरीत मानती है। 
बता दें कि विधि आयोग द्वारा देश में समान नागरिक संहिता लागू करने और न करने के मामले पर देशभर से मांगी गई राय का आज 14 जुलाई शुक्रवार आखरी दिन है।

समीर चौधरी।

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