सहारनपुर: (शिब्ली रामपुरी) हर चुनाव के दौर में दल बदल करने का सिलसिला काफी लंबा चलता रहा है. ऐसा ही इस बार निकाय चुनाव में भी देखने को मिल रहा है कि जब कोई नेता किसी पार्टी में शामिल हो जाता है और फिर तमाम पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर उस नेता को आगे बढ़ाने की कोशिश होती है और टिकट भी उसी को मिल जाता है तो ऐसे में जो पुराने वफादार कार्यकर्ता हैं उनको काफी मायूसी होती है और कई बार राजनीतिक पार्टियों को इसका खामियाजा भी चुनाव में नुकसान के तौर पर उठाना पड़ता रहा है.कभी एक पार्टी में ही रहकर वफ़ादारी आम बात थी लेकिन अब एक पार्टी से दूसरी पार्टी और फिर उसमें भी बात नहीं बनी तो फिर किसी और राजनीतिक पार्टी का दामन थाम लेना आम बात हो चुकी है.अब तो चुनाव किसी पार्टी के टिकट पर लड़ा जाता है और जीतने के बाद किसी और पार्टी में शामिल होना भी ज़्यादा हैरत की बात नहीं होती.निकाय चुनाव की ही बात करें तो कई सीटों पर पुराने वफ़ादार चुनावी मैदान में उतरने के संभावित प्रत्याशियों को तगड़ा झटका टिकट ना मिलने की नाउम्मीदी से लग चुका है और कई को लग भी सकता है. कई वफ़ादार दूसरे राजनीतिक दलों का दामन थाम चुके हैं और कई की तैयारी है और वो सिर्फ़ हवा का रुख़ भांप रहे हैं कि उनको उनकी वफ़ादारी का इनाम मिलता है या फिर उनको किसी नए सियासी खिलाड़ी के सामने दरकिनार कर दिया जाएगा।
एक राजनीतिक पार्टी की बरसों से सेवा करने वाले संभावित प्रत्याशी का कहना था कि अब पॉलिटिक्स अजीब हो चली है कोई 6 महीने पहले आता है और टिकट की मज़बूत दावेदारी में शामिल हो जाता है बाक़ी सब देखते रह जाते हैं?
ऐसा भी नहीं है कि कई नए चेहरों को जनता चुनाव में सफलता तक ही पहुंचाती है बल्कि कई बार ख़ुद पार्टी के वफादार पुराने कार्यकर्ता भी खुले या दबे तौर पर नाराज़गी से चुनाव में नए चेहरे को हराने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखते।
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