साका गुरू का बाग की शताब्दी पर समागम आयोजित कर किया शहीदों को नमन, गुरू घर की मर्यादा को बचाने के लिए दी थी संगत ने शहादतें।

साका गुरू का बाग की शताब्दी पर समागम आयोजित कर किया शहीदों को नमन, गुरू घर की मर्यादा को बचाने के लिए दी थी संगत ने शहादतें।
देवबंद: साका गुरू का बाग 1922 के 100 वर्ष पूर्ण होने पर गुरूद्वारा श्री गुरूनानक सभा में समागम आयोजित कर गुरू घर की मर्यादा के लिए शहादत देने वाले शहीदों को नमन किया गया।
गुरूद्वारा साहिब में आयोजित समागम में शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर से पधारे कथावाचक भाई दविंद्र सिंह ने साका गुरू का बाग का इतिहास संगत को सुनाते हुए बताया कि साका गुरू का बाग गुरू घर की मर्यादा को बनाए रखने के लिए सिखों द्वारा शांत मयी तरीके से दी गई शहादत की मिसाल है। सन् 1922 में तत्कालीन अंगे्रेज सरकार ने दरबार साहिब अमृतसर में गुरू घर के प्रबंध को कमेटियों से छीनकर महंतों को सौंप दिए। महंतों के कार्यकाल के दौरान गुरूद्वारों में मर्यादा से विपरित गलत कार्य होने लगे जिससे सिखों में गहरा रोष व्याप्त हो गया और उन्होंने गुरू घर को महंतों से मुक्त कराने का प्रण लिया। संगत अलग-अलग जत्थों में अमृतसर की ओर चल दी लेकिन अग्रंेज सरकार ने उन्हें दरबार साहिब से कुछ दूरी पर स्थित गुरू का बाग में रोक लिया और संगत पर बेतहाशा जुल्म किए। कई दिन तक सिख वहां शांतमयी तरीके से डटे रहे और बिना किसी विरोध के शहादतें दी। आखिरी में अंग्रेजों को संगत की इच्छाशक्ति के आगे झुकना पड़ा और महंतों से गुरू घर का प्रबंध महंतों से लेकर संगत को सौंप दिया। इस दौरान शहीद हुई संगत की याद में इस वर्ष पूरे विश्व में समागम आयोजित किए जा रहे है। ज्ञानी परमजीत सिंह सहारनपुर व हजूरी रागी भाई गुरदयाल सिंह,अमनदीप सिंह ने गुरवाणी गायन कर संगत को निहाल किया। गुरूद्वारा कमेटी की ओर से रागी जत्थों को सिरोपा भेंटकर सम्मानित किया गया। संचालन गुरजोत सिंह सेठी ने किया। इस दौरान श्याम लाल भारती, चंद्रदीप सिंह, सचिन छाबड़ा, बलदीप सिंह, गुरदीप सिंह, सुखजिंदर सिंह, सन्नी सेठी, सिमरनजीत सिंह, विजय गांधी, हर्ष भारती, हर्षदीप मनचंदा, बिट्टू कपूर,अजय निझारा, देवंेद्रपाल सिंह, कैप्टन कपूर आदि मौजूद थे।

समीर चौधरी/महताब आज़ाद।

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