ग़ुलाम पहले आज़ाद थे या अब आज़ाद हुए।

ग़ुलाम पहले आज़ाद थे या अब आज़ाद हुए।
कांग्रेस के बारे में हमेशा से एक बात कही जाती रही है कि इस पार्टी में ड्राइंग रूम की राजनीति करने वाले नेता हमेशा कामयाब रहे हैं वहीं धरातल पर जनता के बीच मे रहकर काम करने वालो को हमेशा ही सिर्फ़ दरियां बिछाने तक महदूद रहना पड़ा है,ऐसे ही एक नेता गुलाम नबी आजाद हैं जो जम्मू कश्मीर से ताल्लुक रखते हैं और 1970 से कॉंग्रेस में शरीक हुवे,गुलाम नबी आजाद अपने प्रदेश से कोई चुनाव लड़कर नही जीते बल्कि नाशिक महाराष्ट्र से कॉंग्रेस की परंपरागत सीट से 1980 और 1984 में चुनाव जीते मगर उसके बावजूद कॉंग्रेस में वो सब पद सुशोभित किये जिनकी उम्मीद जल्दी से नही की जा सकती,यूथ कांग्रेस से शुरू हुवा सफ़र पार्टी महासचिव केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा,लगातार राज्यसभा में रहे मगर ग़ुलाम ही रहे और अब लुटियन ज़ोन का बंगला बचाने के लिए कॉंग्रेस से आज़ादी का ऐलान कर दिया,गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद को इंदिरा गांधी अपने बेटे की तरह समझती थी और उनकी शादी में संजय गांधी के साथ शिरकत की थी,
गुलाम नबी आजाद संजय गांधी की खास मंडली में शामिल थे और उनको संजय का बेहतरीन चाटुकार का दर्जा प्राप्त था तो ज़ाहिर बात है उस वक़्त भी गुलाम ने इस चाटूकारिता का भरपूर उपयोग किया,संजय के बाद राजीव गांधी के भी टॉप चाटुकार का तमगा उनके पास बरक़रार रहा और उनके साथ भी गुलामी और चाटूकारिता का भरपूर सदुपयोग कर शानदार सहूलतें हासिल करने में कोई कमी बाक़ी न बची,राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी की चाटुकारिता और गुलामी का सिलसिला लंबे वक़्त तक जारी रहा और सहुलतों और सुविधाओं का सिलसिला लगातार जारी रहा,फिर कॉंग्रेस के बुरे दिन शुरू हुवे तो गुलाम नबी आजाद ने अपना अलग गुट बनाया और कभी कभार सुर बदलने की शुरुआत कर दी,ज़ाहिर है उनका राज्यसभा के कार्येकाल खत्म होने के नज़दीक आ रहा था और गुलाम को अहसास होने लगा था कि अबकी बार राज्यसभा में वापसी नामुमकिन है और अगर ऐसा हुवा तो लुटियन ज़ोन का बंगला भी बिल्कुल उसी तरह खाली होगा जिस तरह रामविलास पासवान का उनकी मौत के बाद जबरन खाली करा लिया गया था और खुद को मोदी का हनुमान कहने वाले चिराग पासवान सिवाय हसरत भारी नज़र से बंगले को देखने के अलावा कुछ भी न कर सके थे,
फिर आखिरकार वो दिन भी आ पहुंचा जब राज्यसभा में कोंग्रेस के गुलाम का आख़री दिन था और विदाई के मौके पर मोदी जी भावुक हो गए,मोदी जी की भावुकता पर उसी दिन महसूस हो गया था जी अब कॉंग्रेस का गुलाम वहां से आज़ाद होकर दुसरीं जगह गुलामी करने को खुद को तैयार कर रहा है, बंगला भी सुरक्षित और सुविधाओं का जारी रहना भी अपेक्षित था तो फिर आखिर वही हुवा जो नई स्क्रिप्ट में लिखा जा चुका था,फिर सरकार की तरफ से गुलाम को एक और तोहफ़ा नसीब हुवा जब मोदी सरकार ने गुलाम की गुलामी की कद्र करते हुवे उनको पद्म विभूषण अवार्ड का ऐलान कर दिया,पूरे हिंदुस्तान और तमाम विपक्षी दलों के लिए ये हैरत का मुकाम था कि खांटी कोंग्रेसी रही गुलाम को ये सौगात आखिर कैसे दे सकती है मोदी सरकार?राजनीतिक पंडित तभी अंदाज़ा लगा बैठे थे कि कुछ तो गड़बड़ है वरना ये नामुमकिन कैसे मुमकिन हुवा,अब जाकर अचानक गुलाम को ज्ञान प्राप्त हुवा कि कॉंग्रेस में तो सब कुछ ही गड़बड़ है सोबिया गांधी पुत्रमोह में फंसी है और राहुल गांधी तो पैदाइशी अपरिपक्व है जो शायद इस जन्म में परिपक्व हो भी नही सकते,राहुल गांधी जब संसद में अध्यादेश फाड़ते हैं तो गुलाम अपनी गुलामी को हमेशा की तरह बदस्तूर जारी रखते हुवे एक शब्द भी नही बोलते मगर अब ज्ञान की प्राप्ति होते ही उनके मुह से राहुल के लिए अपरिपक्व शब्द निकलता है,अब गुलाम को अचानक से याद आता है कि कॉंग्रेस में युवाओं की कोई कद्र ही नही है और सबसे कमाल की बात ये कि राहुल के दफ्तर में सब फेंसले उनके सुरक्षाकर्मियों और दफ़्तरियो के हाथ मे हैं हालांकि गुलामी के 50 से ज़्यादा सालों में गुलाम को न तो कभी ज्ञान की प्राप्ति हुई और न ही सोनिया राहुल प्रियंका के फेंसलो पर कोई आपत्ति हुई,
खैर हर इंसान का जाती मामला होता है कि वो कब किसका गुलाम रहे कब किसकी चाटूकारिता करे,मगर नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली अगर हज को जाती है तो मिसाल भी बन जाती है और लोग सवाल भी ज़रूर ही उठाएंगे,और वो भी एक ऐसे व्यक्ति पर तो ज़रूर सवाल उठने वाजिब हैं जिसके पास अपना कभी कोई जनाधार नही रहा,जो कभी मतदाताओं के वोटों से चुनाव जीतकर सदन में नही पहुंच सका,और जिसने युवावस्था से लेकर अब तक सिर्फ सुविधाओं का भरपूर उपयोग किया हो वो भी अपने नही कॉंग्रेस के दम पर,जिसने सिवाय चाटूकारिता और चमचागिरी के अलावा कुछ भी न किया हो,जिसने सिर्फ़ ड्राइंग रूम की राजनीति की हो,
ख़ैर गुलामी तब कर रहे थे या फिर अब करेंगे और लुटियन ज़ोन के बंगले को कब तक बचा पाएंगे और राजनीतिक पंडितों के अनुमान के मुताबिक भाजपा में शामिल होंगे या फिर अलग पार्टी बनाकर भाजपा को फायदा पहुंचाएंगे ये तो आने वाले वक्त में पता चल ही जायेगा मगर गुलाम को अचानक हुई इस ज्ञानप्राप्ति पर किस्से मुबाहिसे तो शुरू हो ही गए हैं,सबसे ज़्यादा नाराजगी कांग्रेसियों में इस बात को लेकर है कि गुलाम ने पार्टी का साथ उस वक़्त छोड़ा जब पार्टी को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी बीमार हैं और अपना इलाज कराने विदेश जा रही हैं।

फैसल खान (वरिष्ठ पत्रकार)

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