विषेश: आजादी के डेढ़ सौ साल के आंदोलन में देवबंद की मुख्य भूमिका।

विषेश: आजादी के डेढ़ सौ साल के आंदोलन में देवबंद की मुख्य भूमिका।
26 जनवरी वैसे तो हमारे संविधान के लागू होने का दिन है----मगर इसके लागू होने से पहले देश को आज़ाद कराने के लिए---1857 में गदर के बाद से 1947 तक अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ पूरे देश मे विभिन्न आंदोलन चले।लोग फांसी पर चढ़े,जेल गए,लाठी-डंडे खाए----ज़ख़्मी हुए----दुःख, तकलीफें उठाइं---- 150 से अधिक वर्ष तक चले खूनी संघर्ष में आज एक लाख से अधिक आबादी वाले क़स्बे-----देवबन्द----की अलग अहमियत है।30 मई 1866 को हाजी सय्यद आबिद हुसैन रह.और उनके ख़ास साथियों दुवारा मस्जिदे छत्ता में अनार के वृक्ष के नीचे स्थापित मदरसा दारुल उलूम में उस्ताज़ मुल्ला महमूद ने जिस प्रथम शागिर्द महमूद को शिक्षा देनी आरम्भ की थी-----उसी शागिर्द ने बड़े होकर हज़रत शैख़ उल हिन्द मौलाना महमूद हसन देवबन्दी बनकर "रेशमी रुमाल आंदोलन"चलाकर अंग्रेजों की मज़बूत जड़ों को कमज़ोर किया था----और उनके हज़ारों शागिर्दों ने लम्बे समय तक अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया।
आरम्भ से इस संस्था----जिसे आज पूरा विश्व"दारुल उलूम"के नाम से जानता है कि स्थापना का उद्देश्य अंग्रेज़ी सरकार के पैर उखाड़ना और ईसाई मिशनरियों को कमज़ोर करना था।बाद में हज़रत मौलाना क़ासिम नानोतवी,हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही,अल्लामा अनवर शाह कश्मीरी,मौलाना सय्यद हुसैन अहमद मदनी,मौलाना उज़ैर गुल,मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी,मौलाना सय्यद अताउल्ला शाह बुख़ारी सहित 14000 हज़ार उल्मा ने फांसी के फंदे को हंसकर गले लगाया-----रेशमी रुमाल आंदोलन के अलावा,नमक आंदोलन,असहयोग आंदोलन,पाकिस्तान विभाजन के विरोध में देवबन्द के उल्मा ने अपनी प्रमुख भूमिका निभाई।आज देश ही नही विश्वस्तर पर "निशुल्क ,आवासीय,भोजन सहित"शिक्षा का जो कॉन्सेप्ट प्रचलित है ।इन्ही मदरसों की देन है।
-----आज भारत की राष्ट्रीय साक्षरता दर में मदरसों से पढ़े----छात्रों की हिस्सेदारी इसलिए भी उल्लेखनीय हैं---क्यूंकि इनकी शिक्षा और इनके शिक्षकों पर सरकारी व्यय ना के बराबर है----मगर अफसोस आज़ादी के लंबे समय पश्चात भी-----मुस्लिम समुदाय की आर्थिक,सामाजिक,शैक्षिक,राजनीतिक हालत दिन बा दिन बद से बदतर होती जा रही है-----जबकि उसको आरंभ से दूसरी जातियों की तरह-----आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था----गत दशक में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने भारत मे मुस्लिमों को दलितों से बदतर क़रार दिया था----- मगर हम इसका पूर्ण दोष किसी भी सरकार को नही दे सकते---- देश का मुस्लिम नेतृत्व भी बड़ा दोषी है।वर्तमान में अशिक्षित,अपराध प्रवर्ति के मुस्लिम नेतृत्व ने मुस्लिम जान बूझकर जाति-वर्ग में बांटकर छोटे-बड़े पद तो पा लिए----मगर वो उच्च स्तर पर मुस्लिम रहनुमाई में असफल रहे।
------आज मुस्लिम अपने ही पुरखों के देश मे----हर क्षेत्र में संघर्षशील दिखाई दे रहा है-----जो किसी भी लोकतंत्र व्यवस्था के लिए खेद का विषय है।

कमल देवबन्दी (वरिष्ठ लेखक, समीक्षक)

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