तो इमरान मसूद की सपा में एंट्री से देवबंद विधानसभा पर भी दावेदारों की लंबी फेहरिस्त में मच जाएगी खलबली।

तो इमरान मसूद की सपा में एंट्री से देवबंद विधानसभा पर भी दावेदारों की लंबी फेहरिस्त में मच जाएगी खलबली।
देवबंद: देवबंद विधानसभा से समाजवादी पार्टी के टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है यहां के कई नेता समाजवादी की साइकिल पर सवार होकर विधानसभा का सफर तय करना चाहते हैं हालांकि इसका आखिरी निर्णय सपा प्रमुख अखिलेश यादव को ही करना है लेकिन देवबंद से नेताओं की एक बड़ी फेहरिस्त जो टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं और लगातार लखनऊ से संबंध बनाए हुए हैं।

बताया जाता है कि जल्दी ही इमरान मसूद भी की समाजवादी पार्टी में एंट्री होने जा रही है और वह कांग्रेस का हाथ छोड़ देंगे, जिसके बाद जहां कांग्रेस को जिले में तगड़ा झटका लगेगा वहीं सपा में भी खलबली मचना तय है, क्योंकि सहारनपुर की बेहट विधानसभा सीट पर टिकट को लेकर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से काजी खानदान की तकरार हुई थी जिसके बाद से लगातार संबंध बनते बिगड़ते चले आ रहे हैं, हालांकि उसके बाद से लगातार बेहट की विधानसभा सीट पर दो चुनाव हारने के बावजूद जामा मस्जिद दिल्ली के शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी के दामाद उमर अली खां लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के प्रयासों में लगे हुए हैं, हालांकि सपा सरकार बनने के बाद उन्हें एमएलसी जरूर बना दिया गया था।
वही देवबंद में पूर्व विधायक माविया, पूर्व विधायक शशिबाला पुंडीर और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह राणा के पुत्र और पुत्री कार्तिकेय राणा और प्रियंवदा राणा देवबंद विधानसभा से टिकट के प्रबल दावेदारों में गिने जाते हैं, इतना ही नहीं बल्कि सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर के करीबी कारी राव साजिद, राजेंद्र सिंह पुंडीर, ठाकुर अजय रावत और चौधरी परमिंदर सिंह सहित देवबंद से विधानसभा चुनाव साइकिल के निशान पर लड़कर विधानसभा जाने का सपना कई और बड़े नेता भी देख रहे हैं,  लेकिन इसका निर्णय जल्दी ही समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को करना है क्योंकि प्रदेश में चुनाव का बिगुल बज चुका है और 14 फरवरी को जिला सहारनपुर में पोलिंग है। वहीं इमरान मसूद की एंट्री के कारण देवबंद के अलावा भी जिले की सभी सीटों पर समीकरण बनना और बिगड़ना तय है। 
इमरान मसूद भले लगातार चार चुनाव (दो विधानसभा और दो लोकसभा) हार चुके हो लेकिन आज भी उन्हें जिले में संख्या बल वाला नेता समझा जाता है यही कारण है कि पार्टियों में उनकी पहचान बड़े नेता के तौर पर होती है।

समीर चौधरी।

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