अल्लामा इक़बाल के जन्म दिवस पर हाशमी कॉलिज में मनाया गया यौम उर्दू (सालार ग़ाज़ी)अदब की ज़बान है उर्दू: कशिश वारसी

अल्लामा इक़बाल के जन्म दिवस पर हाशमी कॉलिज में मनाया गया यौम उर्दू (सालार ग़ाज़ी)
अदब की ज़बान है उर्दू: कशिश वारसी
अमरोहा: हाशमी गर्ल्स पी0जी0 कालेज में अंजुमन तरक्की उर्दू उत्तर प्रदेश की ओर से अल्लामा इकबाल की पैदाइश पर एक सेमिनार यौमे उर्दू का आयोजन किया गया। जिसमें मेहमाने खुसूसी सूफी इस्लामिक बोर्ड के सदर जनाब कशिश वारसी व मुख्य अतिथि डा0 मिस्बाह सिद्दीकी रहे। कार्यक्रम की सदारत डा0 सिराजुद्दीन हाशमी व निजामत सैयद शिबान कादरी ने की। कार्यक्रम का आगाज तिलावते कलामे पाक व नात शरीफ से किया गया। 

मेहमाने खुसूसी के तौर पर तशरीफ लाये सूफी इस्लामिक बोर्ड के सदर जनाब कशिश वारसी ने कहा कि अल्लामा इकबाल एक ऐसे शायर हैं जिनको अवामी शायर भी कहते हैं। आपने कौम को अपनी शायरी के ज़रिये एक पैग़ाम दिया। अल्लामा इकबाल के पूर्वज कशमीरी ब्रह्मण थे, मगर बाद में इस्लाम कुबूल कर लिया था। अल्लामा इकबाल की यौमे पैदाइश यौमे उर्दू पर हमें अपने घरों में उर्दू का माहौल पैदा करना चाहिए तथा उर्दू के फरोग को अधिक से अधिक बढ़ाना देना चाहिए। डा0 मिस्बाह सिद्दीकी ने कहा कि अल्लामा इकबाल हमारी ज़बान के फ़लसफ़ी शायर हैं उन्हांेने अपने फलसफे से मिल्लते इस्लाम के दर्द की दवा की। इकबाल हाल, माज़ी, मुस्तकबिल का शायर है। असलम उस्मानी ने कहा कि इकबाल की विलादत 9 नवम्बर 1877 को सियालकोट में हुई। इकबाल की उम्र 4 साल 4 महीने की हो गयी तो दीनी तालीम हासिल करने के लिए उन्हें मकतब में बैठा दिया। इकबाल ने कम उम्री मंे रिवायती अंदाज की शायरी शुरू कर दी थी। मुरादाबाद से तशरीफ लायीं रिहाना परवीन ने कहा कि इकबाल ने कौम को एक पैग़ाम दिया और सोयी हुई कौम को जगाया। कुरआन और हदीस की रौशनी मंे शायरी की मिसाल देकर जो लोगों को नसीहत की और अपने वतन से मुहब्बत की मिसाल उनके तराने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ में मिलती हैै। जो सारे भी हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी गुनगुनाया जाता है। आज हम अपने बच्चों को पढ़ा तो रहे हैं इंग्लिश मीडियम में। मगर उर्दू की तरफ तवज्जो नहीं है। हमें अपने बच्चों को उर्दू की शिक्षा जरूर दिलानी चाहिए ताकि वह आगे उर्दू को जिंदा रख सकें।
 हाशमी एजुकेशनल गु्रप के चेयरमैन व कालेज प्रबंधक डा0 सिराजुद्दीन हाशमी ने अल्लामा इकबाल पर अपने ख्यालात का इज़हार करते कहा कि उर्दू अदब की तारीख़ में सैकड़ो ऐसे शायर हुए हैं, जिन्होंने हयाते जावेद हासिल की है। ग़ालिब, अक़बर, हसरत, मोमिन, मीर, इक़बाल, दाग ऐसे शायर हैं जिनका नाम रहती दुनिया तक उर्दू अदब में बाकी रहेगा। आज गालिब के शेर हर खासो आम गुनगुनाते हैं। मगर इकबाल एक ऐसा शायर है जो कि उर्दू अदब में हिन्दुस्तान का ही नहीं बल्कि तमाम दुनिया का शायर है। वो किसी एक कौम का शायर नहीं खतीब, फलसफी, मौर्रिख सभी कुछ है। इकबाल दुनिया का पहला शायर है जिसने दुनिया के तमाम फलसफांे का मुताला मुकम्मल तरीके से किया। इसमें खुदी की तालीम दी। इकबाल हाल, माज़ी, मुस्तकबिल का शायर है। इकबाल की मकबूलियत का आगाज़ उनकी नजम ‘‘हिमालया’’ से होता है। जिसको देख शेख अब्दुल कादिर ने अपना रिसाला ‘फहज़न’ मंे छापा था।सन् 1905 में इंग्लिस्तान चले गये वहां से पीएचडी करके वापस आये। वतन से बाहर जाकर इकबाल का नज़रिया बिलकुल जुदा हो गया। वो सारी दुनिया में अपना वतन शुमार करते थे। हमें चाहिए कि अंग्रेजी तालीम, हिन्दी तालीम के साथ साथ उर्दू को भी ज़रूरी बनायें। अंजुमन तरक्की उर्दू की कोशिश है कि उर्दू को तालीमी निसाब में शामिल किया जाये और जरूरी मजामीन के तौर पर उसका हक मिलना चाहिए। क्योंकि यह एक ऐसी जबान है जिसके अन्दर अदब व सलीका है। हमारे बच्चे तभी तहजीब और सलाहियत सीखेंगे जब वह उर्दू से वाबस्ता हांेगे। आज हम यौमे उर्दू पर इस बात का हलफ लेते हैं कि हम ज्यादा से ज्यादा अपने बच्चों को उर्दू पढ़ाएं और उर्दू की तरक्की के लिए काम करेंगे। 

हाशमी एजुकेशनल गु्रप के चेयरमैन डा0 सिराज उद्दीन हाशमी ने सभी मेहमानों का कालेज प्रतीक चिन्ह व शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर नासिर अमरोही, सुलेमान फराज, फहीम शाहनवाज उवैस रिजवी, अली इमाम रिजवी, मंसूर अहमद एडवोकेट, कमर नकवी, अख्तर उल अब्बास गुलजार, अली अख्तर नकवी, सूफी निशात, अतीकुर्रहमान फारूकी, शाहिद सैफी, अनवर समदानी, फहीम नबी, आदि समेत कालेज का समस्त स्टाफ मौजूद रहा।

रिर्पोट: सालार गाजी
Posted By Sameer Chaudhary

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