सेकुलर पार्टियों द्वारा मुस्लिमों की अनदेखी का ओवैसी उठा रहे हैं जमकर फायदा।
कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तक यह आरोप हमेशा से लगाती रही हैं कि भाजपा मुसलमानों की अनदेखी करती है और वह मुसलमानों को राजनीति में आगे बढ़ते हुए देखना पसंद नहीं करती. 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 तक भाजपा द्वारा मुसलमानों को टिकट नहीं दिया गया तो इस पर विपक्षी पार्टियों द्वारा भाजपा पर खूब आरोप लगाए गए. लेकिन वर्तमान समय में समाजवादी पार्टी -बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक मुसलमानों से दूरी बनाए हुए दिखाई देती है. ऐसा नहीं है कि इन पार्टियों में मुस्लिम नेता नहीं है लेकिन अब इन मुस्लिम नेताओं को एक तरह से हाशिए पर कर दिया गया है. समाजवादी पार्टी को ही ले लीजिए समाजवादी पार्टी पर मुस्लिम पार्टी होने का कई बार भाजपा आरोप लगाती रही है और मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप भी लगते रहे हैं. लेकिन यदि हम गंभीरता से गौर करें तो सपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तमाम मुद्दे को जोर-शोर से उठाते हैं मगर जहां तक मुसलमानों से जुड़े किसी मुद्दे की बात आती है तो इस पर वह खामोशी अख्तियार किए रहते हैं।
कभी मुस्लिमों पर अपनी शिकस्त का ठीकरा फोड़ने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती भी कुछ इसी तर्ज़ पर सियासत करती नजर आती हैं. कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी काफी समय से यूपी की सियासत में सरगर्म हैं लेकिन वह भी मुसलमानों से एक तरह से दूरी बनाए हुए हैं. कुछ चंद मुस्लिम चेहरे भले ही उनके मंच पर दिखाई देते हैं लेकिन जहां तक मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों की बात है तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से लेकर राहुल गांधी और सोनिया गांधी तक इन मामलों पर खामोश रहते हैं. यदि हम आम आदमी पार्टी की बात करें तो वैसे तो आम आदमी पार्टी सबसे मजबूत दिल्ली में है जहां पर पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं.लेकिन अब आम आदमी पार्टी ने अपने पांव यूपी से बाहर भी पसारने शुरू कर दिए हैं और वह यूपी और उत्तराखंड में पूरी मजबूती के साथ विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है लेकिन यदि गंभीरता से आम आदमी पार्टी पर गौर करें तो यहां पर आम आदमी पार्टी भाजपा के नक्शे कदम पर चलते हुए दिखाई देती है. ऐसा सिर्फ महसूस ही नहीं होता बल्कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के कई बयान भी इस बात को साबित करते हैं. दिल्ली के जिन मुस्लिम इलाकों में कभी आम आदमी पार्टी कामयाब हुई थी और आज वहां से आम आदमी पार्टी के विधायक हैं।
उन इलाकों में रहने वाले इस समुदाय के काफी लोगों की राय यह है कि अब आम आदमी पार्टी का नजरिया बदल चुका है और उसने मुसलमानों के हितों की अनदेखी की है जिसका खामियाजा उसको दिल्ली विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा. जिस तरह से सपा बसपा और कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी ने अपना सियासी नजरिया बदला है या फिर वह भाजपा के नक्शे कदम पर चलती दिखाई देती है तो उससे कहीं ना कहीं यह जरूर कहा जा सकता है कि इन पार्टियों को मुस्लिमों की अनदेखी विधानसभा चुनाव में भारी भी पड़ सकती है. राजनीति में गहरी समझ रखने वाले लोगों का यहां तक कहना है कि यह वही पार्टियां हैं जो कल तक भाजपा पर मुसलमानों की अनदेखी का आरोप लगाती थी कि भाजपा मुसलमानों को चुनावी मैदान में टिकट नहीं देती क्योंकि मुस्लिमों को सियासत में आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती लेकिन आज यही पार्टियां मुसलमानों से दूरी बनाए हुए हैं।
ओवैसी जैसे नेता बना रहे अपने पक्ष में माहौल।
खुद को सेकुलर और मुसलमानों का हमदर्द कहने वाली इन पार्टियों ने जिस तरह से मुस्लिम समुदाय को मायूस किया है उसी की वजह से ओवैसी जैसे नेता हैदराबाद की सियासत से बाहर उभर कर सामने आए हैं और अब यूपी में वह इसी का फायदा उठाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. ओवैसी लगातार मुस्लिम मुद्दों को उठाते हुए सपा बसपा और कांग्रेस पर लगातार ये आरोप लगाते हैं कि यह पार्टीयां आखिर क्यों मुसलमानों के मुद्दे पर खामोश रहती हैं. ज़ाहिर है ओवैसी ऐसे बयान देकर अपने पक्ष में माहौल तैयार करने के प्रयास में जुटे हुए हैं।
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