देवबंद: एसीजेएम देवबंद की अदालत ने भारत में अवैध रूप से निवास कर रहे दो बांग्लादेशी नागरिकों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने और अन्य गंभीर अपराधों में दोषी पाते हुए अधिकतम सात वर्ष के कारावास और 80 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई है। अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में एक माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ेगा।
सरकारी अधिवक्ता जितेंद्र कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2023 में उत्तर प्रदेश एटीएस ने एक गुप्त सूचना के आधार पर देवबंद में छापेमारी कर दो बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों में हबीबुल्लाह मिस्बाह उर्फ नाजिर पुत्र अबु ताहिर, निवासी जिला दिनाजपुर, रंगपुर, बांग्लादेश और अब्दुल्लाह उर्फ अब्दुल अवल पुत्र अब्दुल अजीज, निवासी गांव चारा खली, जिला नागोर, बांग्लादेश को देवबंद से पकड़ा गया था।
गिरफ्तारी के समय दोनों के पास से भारत के आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक खाता, व शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के प्रमाण पत्र बरामद हुए थे। जांच के बाद पुलिस ने दोनों के खिलाफ धारा 419, 420, 467, 468, 471, 120-बी, पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया था। दोनों अभियुक्त तभी से देवबंद उपकारागार में निरुद्ध थे।
मामले की सुनवाई एसीजेएम देवबंद सरदार परविंदर सिंह की अदालत में चल रही थी। बुधवार को फैसला सुनाते हुए अदालत ने दोनों आरोपियों को सात अलग-अलग धाराओं में दोषी पाते हुए अधिकतम सात वर्ष के कारावास एवं 80 हजार रुपये के आर्थिक दंड की सजा सुनाई।
अदालत ने की तल्ख टिप्पणी।
अदालत ने इस मामले में जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए। न्यायालय ने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि अभियुक्तों द्वारा फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के बावजूद विवेचना अधिकारी न तो दस्तावेज तैयार करने वाले संबंधित अधिकारियों तक पहुंचे और न ही इस अपराध की जड़ तक जाने का प्रयास किया गया।
एसीजेएम परविंदर सिंह ने कहा कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक खाता और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला जैसे दस्तावेज बिना किसी मदद के तैयार नहीं किए जा सकते। यह एक संगठित अपराध है, जिसे अकेले कोई भी अंजाम नहीं दे सकता। इसके पीछे कुछ स्थानीय व्यक्तियों, बिचौलियों या अधिकारियों की संलिप्तता हो सकती है, जिनकी जांच आवश्यक थी।
न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला केवल फर्जी दस्तावेजों तक सीमित नहीं है, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष द्वारा इस अपराध के मूल कारणों तक पहुंचने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
अदालत ने जांच एजेंसियों को निर्देशित किया कि वे इस संगठित अपराध में संलिप्त अन्य व्यक्तियों, विशेषकर फर्जी दस्तावेजों को तैयार करने वाले या उनके सत्यापन में शामिल रहे अधिकारियों और संस्थानों की गहन जांच करें और उनके विरुद्ध भी वैधानिक कार्रवाई सुनिश्चित करें।
समीर चौधरी/रियाज़ अहमद।

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