मौलाना महमूद मदनी ने RSS प्रमुख को दी साथ आने की दावत, जमीयत इजलास के दूसरे दिन बोले मदनी, नफ़रत और अहंकार भूला कर एक-दूसरे से हाथ मिलाएं और देश को आदर्श एवं सुपर पावर बनाएं।

नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना असअद मदनी ने यहां राम लीला मैदान नई दिल्ली जमीअत के महाधिवेशन में शनिवार 12 फरवरी को अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जी और उनके अनुयायियों को सादर आमंत्रित करते हैं कि आइए आपसी भेदभाव, द्वेष और अहंकार को भूल कर एक-दूसरे से हाथ मिलाएं और अपने प्यारे देश को दुनिया का सबसे विकसित, आदर्श और सुपर पावर और शांतिपूर्ण देश बनाएं।
उन्होंने कहा कि सभी मसलों का समाधान बैठकर और चर्चा करके किया जा सकता है। आपसी घृणा के अंधेरे वातावरण में जो लोग भी आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए संवाद और एक-दूसरे के विचारों को समझने के लिए प्रयासरत हैं, हम उन सभी का स्वागत करते हैं और ऐसी सभी कोशिशों का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा हमारा सनातन धर्म के साथ कोई विरोध नहीं है। इसी तरह आपको भी इस्लाम से आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मुल्क हमारा है, लेकिन हमारी इस बात को गलत ढंग से पेश किया जाता है। मदनी ने कहा कि देश में यदि कोई घटना होती है, तो उसे पूरे समाज या देश का आईना नहीं बताया जाना चाहिए। देश में मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। नफ़रत की कोई घटना होती है, तो सरकार और प्रशासन उस पर कोई कार्यवाही नहीं करता, जो उसे करना चाहिए। बल्कि वह खामोश रहता है। उन्होंने मुसलमानों से भी अपील की कि वह पूरे मुल्क और बहुसंख्यक समुदाय के बारे में उस नजरिए से ना सोचें जो कुछ नफरती लोग फैलाते हैं।
अधिवेशन के पहले दिन मौलाना महमूद मदनी ने कहा था कि भारत मुसलमानों की भी मातृभूमि है। यह कहना गलत और निराधार है कि इस्लाम धर्म भारत से बाहर आया है। इस्लाम एक पुराना धर्म है और हिंदी मुसलमानों के लिए भारत सबसे अच्छा देश है। यह देश जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का है, उतना ही यह महमूद का भी है। महमूद ना तो 1 इंच आगे है ना पीछे है और वे भी महमूद से 1 इंच आगे नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए सभी को मिलजुल कर काम करना होगा। आज मदनी साहब ने मीडिया द्वारा बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किए जाने पर दुख जताते हुए कहा कि कुछ मायूसी है, तो बहुत कुछ उत्साहजनक भी है। उन्होंने कहा कि देश के लाखों किलोमीटर पर 140 करोड़ लोग रहते हैं। सबके खानपान के तरीके, रहन-सहन और सोचने के तरीके अलग-अलग हैं। फिर भी यह मुल्क जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि पाकिस्तान ले लिया फिर क्यों यहां रहते हैं। कुछ लोग मुस्लिम बादशाहों से नाम जोड़ते हैं। मदनी साहब ने कहा कि जिनको जाना था वह 1947 में चले गए, लेकिन हमारे पूर्वजों की तरह हमारी भी खाक यही दफन होगी।
मदनी साहब ने कहा कि देश के बहुसंख्यक से उनका कोई विरोध नहीं है। वैसे तो हमारा किसी से भी विरोध नहीं है। कुछ छोटे से तबके के साथ मतभेद हैं। देश की बहुमत आबादी हमारे साथ है। उन्होंने कहा कि दलितों, आदिवासियों और कमजोर लोगों पर हमले होते हैं। यह मुल्क की शान के खिलाफ है। आज हिंदुत्व को जिस तरह पेश किया जा रहा है। वह खतरनाक है। गांधी जी ने भी अपने जीवन के अंतिम क्षण तक उसे रोकने की कोशिश की थी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के एक पत्र का उल्लेख करते हुए कहा "मेरा तजुर्बा है कि कोई मजहब इंसानियत के इस मुकाम पर नहीं पहुंचता जहां इस्लाम पहुंचा है, ।हमारी मातृभूमि के लिए दो महान सिद्धांतों का मेल हिंदू मत और इस्लाम, वेदांत मस्तिष्क और इस्लाम शरीर, एकमात्र उम्मीद है। मैं अपने दिल की आंखों से देख रहा हूं कि भविष्य का उत्तम भारत, अराजकता और भेदभाव से निकल कर, वेदांत मन और इस्लाम शरीर द्वारा सफल और जीत की ओर अग्रसर हो रहा है।"

 मौलाना मदनी कहा कि देश की शिक्षा की बात जब होती है तो वह पूरे देश के लिए होती है। ऐसे में किसी एक किताब को यदि लादा जाता है, तो हम उसका विरोध करते हैं, क्योंकि भारत विविधताओं का देश है।

 मौलना मदनी ने पसमांदा मुस्लिम पर सर्कार की नित्यों का इस्तिक़बाल करते हुए है कहा कि भारतीय मुस्लिम समाज में जो विकृतियां उत्पन्न हुई हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण जात-पात की व्यवस्था है। हालांकि इस्लाम की स्पष्ट शिक्षाएं समानता और बिना किसी नस्लीय भेदभाव पर आधारित हैं, लेकिन जिन लोगों ने इस्लाम धर्म को अपनाया, वह अपने-आप को जात-पात की पुरानी व्यवस्था और रीति-रिवाजों से पूरी तरह मुक्त नहीं कर सके। इस कारण भारतीय मुस्लिम समाज अंतर्विरोधों से ग्रसित रहा है। हम आज के महाधिवेशन के अवसर पर हम यह घोषणा करना चाहते हैं कि मुसलमानों का प्रत्येक वर्ग मुस्लिम समाज में बराबरी का दर्जा रखता है और पूर्व में जो अन्याय जात-पात के नाम पर हुए हैं, उनपर हमें पछतावा है। उसे दूर करने के लिए हम संकल्प लेते हैं कि हम मुसलमानों में आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिणिक हर तरह से समानता स्थापित करने की हर संभव कोशिश करेंगे। इसके साथ ही पिछड़े मुसलमानों को छूट, आरक्षण और सरकारी योजनाएं दिलाने के लिए हर संभव संघर्ष करेंगे।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के 34 वें तीन दिवसीय आम अधिवेशन (10-12 फरवरी) में मुल्क और कौम के मौजूदा हालात पर व्यापक बहस मुबाहसा हुआ। अधिवेशन की मुख्य चिंता यह थी कि देश में इस्लामोफोबिया खड़ा किया जा रहा और केंद्र सरकार खामोश है, जबकि उसे ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। मुसलमानों की धार्मिक शिक्षा, आधुनिक शिक्षा और रोजगार के अवसर सीमित किए जा रहे हैं। देश में इस्लाम व मुसलमानों के खिलाफ नफरत का अभियान चलाया जा रहा है और समान नागरिक संहिता के जरिए देश की एकता अखंडता पर चोट पहुंचाई जा रही है। अधिवेशन के दूसरे दिन 11 फ़रवरी को वक्ताओं ने कहा कि किसी भी मुल्क के हालात बदलते रहे हैं और आज की स्थितियां भी बदलेंगी। ऐसे में इस्लाम सिखाता है कि सभी लोग मिल जुल कर साथ रहें।

आम अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में कहा गया है कि मदरसों और इस्लाम पर एक बड़ा तबका निरंतर हमला कर रहा है और उसकी धार्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षाओं की आलोचना की जा रही है, जबकि मदरसे गरीब मुसलमानों को मुफ्त शिक्षा पाने का अवसर देते हैं। मदरसों से निकले छात्रों और उलेमाओं ने आजादी की जंग लड़ी थी और आज भी देश निर्माण में वह अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि मौजूदा फासीवादी सरकार उन्हें झूठे मामलों में गिरफ्तार कर रही है। प्रस्ताव में कहा गया है कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद मदरसों में आधुनिक शिक्षा का पक्षधर है और वह इसके लिए निरंतर प्रयासरत है, लेकिन वह मदरसों की शिक्षा में सरकारी हस्तक्षेप के भी खिलाफ है।
देश में बढ़ते नफ़रती अभियान और इस्लामिक फोबिया की रोकथाम पर जारी मसौदा प्रस्ताव में कहा गया है कि सरकार इस पर तुरंत रोक लगाए और नफरत फैलाने वाले तत्वों एवं मीडिया पर अंकुश लगाए। अधिवेशन ने सभी दलों और देश प्रेमियों से अपील की है कि वह फासीवादी ताकतों से राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मुकाबला करें।

देश में लंबे समय से समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) के क्रियान्वयन को लेकर चर्चा चल रही है। इस पर पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि नागरिक संहिता केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है, बल्कि इससे सभी सामाजिक समूहों, संप्रदायों, जातियों और धर्मों के लोगों को इसका सामना करना पड़ेगा। संविधान निर्माताओं ने गारंटी दी थी कि मुसलमानों के धार्मिक मामलों मुस्लिम पर्सनल ला में छेड़छाड़ नहीं होगी, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के लिए तीन तलाक, खुला और हिजाब मामलों में बदलाव किया गया और अदालत ने भी सकारात्मक रुख नहीं रखा। कॉमन सिविल कोड देश की एकता अखंडता पर सीधा प्रभाव डालेगा। साथ ही जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने संपत्ति में महिलाओं को हिस्सेदारी देने और तलाक के मामले में शरीयत कानूनों को पूरी तरह से लागू न किए जाने पर आपत्ति करते हुए मुस्लिम समुदाय से अपील की कि यदि वह शरीयत नियमों का पालन करें तो कोई भी सरकारी कानून उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

मुसलमानों के शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन पर पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि आर्थिक सर्वेक्षणों, आयोगों, जस्टिस सच्चर कमेटी और रंगनाथ कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि देश के मुसलमान दलितों से भी एक पायदान नीचे हैं। फिर 20% आबादी देश के विकास में कैसे योगदान कर सकती है ? इसके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था, उत्पादन, आय और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मुस्लिमों की बड़ी भागीदारी है। मध्य पूर्व देशों से 6 बिलियन डालर की विदेशी मुद्रा प्रतिमाह अर्जित होती है, जिसमें से 70% योगदान गरीब मजदूर अपने खून पसीने से करते हैं। देश के दर्जनों शहरों में ताला, चमड़ा, पीतल, कालीन, कपड़ा बुनाई, कुटीर उद्योग और मशीनरी वर्कशॉप में मुसलमान बड़ी संख्या में कार्यरत हैं, लेकिन मौजूदा सत्ता और उसकी नीतियां उन्हें उजाड़ रही है।

आरक्षण संबंधी प्रस्ताव में कहा गया है कि गरीब दलित व आदिवासी यदि मुस्लिम अथवा ईसाई बन जाते हैं, तो उन्हें आरक्षण से वंचित कर दिया जाता है। पसमांदा समाज के आरक्षण का भी सवाल अधिवेशन में जोरदार ढंग से उठाया गया। आरक्षण में संविधान के अनुच्छेद 341 में संशोधन करके धर्म की सीमा को हटाए जाने की भी मांग की गई है। मुस्लिम वक्फ संपत्तियों संबंधी मसौदे में कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी गैर सरकारी लोगों ने कब्जा कर रखा है। इसके अलावा वक्फ संपत्तियों को लिमिटेशन एक्ट 1857 से लागू किया जाए ताकि वक्फ संपत्तियों का संरक्षण हो सके। वक्फ बोर्ड का जहां गठन नहीं हुआ है या पद रिक्त हैं वहां भर्ती किया जाए और वक्फ संपत्तियों का आकलन किया जाना चाहिए।
 मीडिया के इस्लाम विरोधी रवैया पर जारी प्रस्ताव में कहा गया है कि मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ कारपोरेट मीडिया एक खास तबके और सत्ता के इशारे पर उसकी छवि धूमिल कर रहा है। इसकी जमीयत उलेमा-ए-हिंद कड़ी निंदा करता है और मुसलमानों से अपील करता है कि वह मीडिया और सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे प्रोपेगंडा अभियानों से दुखी और उदास ना हों, क्योंकि झूठ स्वयं अपनी मौत मर जाता है। जरूरत होने पर उन्हें साइबर सेल और पुलिस में मुकदमा दर्ज कराना चाहिए। चुनाव में मतदाता पंजीकरण और भागीदारी को सुनिश्चित करने, सद्भावना मंच मजबूत करने, इस्लामी शिक्षा पर गलतफहमी दूर करने, फ़लस्तीनी और इस्लामी जगत के समक्ष चुनौतियां, पर्यावरण संरक्षण, पसमांदा मुसलमानों की स्थिति, कश्मीर की वर्तमान स्थिति और तुर्की व सीरिया में आए भूकंप पर भी प्रस्ताव पारित किए गए हैं। जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपने सीमित संसाधनों में तुर्की और सीरिया में आए ज़लज़ले के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा की है।
आज के अधिवेशन जिन वक्ताओं ने ख़िताब किया उनमे कुछ अहम तरह हैं।  
 जमीअत उलमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन क़ासमी, अख्तरुल वासे , मुफ़्ती मोहम्मद अली क़ासमी रंगून, मौलाना राशिद आज़मी दारुल उलूम देओबंद, मौलाना नदीम सिद्दीक़, मौलाना अब्दुर्रब आज़मी , मौलाना इब्राहीम तारापुरी, मौलाना खालिद अध्यक्ष जमीअत उलमा नेपाल, मौलाना अब्दुल मोईद फतेहपुर, मौलाना इफ़्तेख़ार क़ासमी, मुफ़्ती अफ्फान मंसूरपुरी, हाफिज बशीर असम, मौलाना एजाज क़ासमी पटना आदि मौजूद रहे।

समीर चौधरी।

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