संघ और मुस्लिम संगठनों में नज़दीकियां, वक़्त की ज़रूरत या सियासत?

(शिब्ली रामपुरी)
अगस्त 2019 में जमीयत उलेमा हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी और संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात हुई थी और यह मुलाकात काफी खुशगवार माहौल में हुई और माना गया कि इसके काफी बेहतर नतीजे निकल कर सामने आएंगे।
इसी साल 14 जनवरी को दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग के आवास पर r.s.s. नेताओं के साथ मुस्लिम बुद्धिजीवी और धार्मिक संगठनों से जुड़े लोगों की मुलाकात हुई जिसमें जमीयत उलेमा हिंद की ओर से भी कुछ लोग शामिल हुए थे।

 एक महीने पहले जमीयत उलेमा हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी की हरिद्वार में निरंजन पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी से भी मुलाकात हुई और दोनों विद्वानों ने इस मुलाकात को एक अच्छी कोशिश और पहल बताया।
 अब दिल्ली में जमीयत उलेमा हिंद के अधिवेशन में मौलाना महमूद मदनी का जो बयान आया है उससे पता चलता है कि संघ और बीजेपी नेताओं के साथ मुस्लिम संगठनों की जो नज़दीकियां बढ़ रही है उससे कहीं ना कहीं यह बेहतर संदेश निकल कर सामने आ रहा है कि दोनों तरफ़ से किसी भी तरह की जो गलतफहमियां है वह दूर होकर एक अच्छा आपसी भाईचारे और सौहार्द का माहौल कायम हो सकेगा. दिल्ली में जमीयत उलेमा हिंद के नेता मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमारी भाजपा और संघ से कोई दुश्मनी नहीं है हम आपसी भाईचारे और सौहार्द के लिए इनके नेताओं का स्वागत करते हैं।

जाहिर है भविष्य में भी संघ और बीजेपी नेताओं के साथ मुस्लिम संगठनों से जुड़े लोगों की मुलाकातों का दौर चलता रहेगा. वैसे किसी भी तरह की गलतफहमी को दूर करने के लिए दोनों धर्मों के विद्वानों की यह मुलाकाते वक्त वक्त पर होते रहना जरूरी है इससे एक अच्छा संदेश जहां निकल कर सामने आएगा वही एक बेहतर माहौल भी कायम हो सकेगा।

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