हर बार की तरह मुसलमानों को परेशान करने के लिए एक बार फिर से नया प्रोग्राम शुरू कर दिया गया है, मदरसों का सर्वे करने का आदेश देकर उत्तर प्रदेश सरकार ने उन लोगो और नौजवानों को खुश करने का एक बहाना तलाश किया जिनको न तो वो रोजगार दे पा रही और न ही शिक्षा स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं दे पा रही है,गांव देहात की एक बहुत पुरानी कहावत है कि चाहे हमारी दीवार गिर जाए मगर पड़ोसी की भैंस की टांग ज़रूर टूटनी चाहिये और इस मिसाल को उत्तर प्रदेश सरकार के बहुत सारे फेंसलों में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है,हालांकि सरकार का कहना है कि मदरसों के सर्वे का आदेश मदरसों या मुस्लिम समाज को परेशान करना नही बल्कि ये तो उनकी नियमित रूप से की जाने वाली जांच का हिस्सा है और सरकार का मकसद मुस्लिम नौजवानों को डॉक्टर इंजीनियर और अफसर बनते देखना है मगर सरकार की बदनीयती साफ़ नज़र तब आती है जब ये सर्वे सिर्फ मदरसों का होता है और उत्तर प्रदेश में चल रहे तमाम गुरुकुल और आरएसएस के शिशु मंदिर इससे अछूते रहते हैं,ज़ाहिर है अगर सरकार संस्थानों की नियमित जांच कर रही है तो फिर टारगेट सिर्फ़ मदरसे ही कियूं बनाये जा रहे हैं,तमाम गुरुकुल शिशु मंदिर भी जांच के दायरे में आने चाहिये और सिर्फ़ मदरसों के बच्चों को ही कियूं अंग्रेजी तालीम और अफसर बनाने की कोशिश किसलिए की जाती है,आखिर गुरुकुल में भी तो धार्मिक शिक्षा ही दी जा रही है फिर उनको अच्छी तालीम और बेहतर रोजगार से वंचित कियूं रखा जा रहा है ये समझ से बाहर की बात है,
फिर दूसरा बड़ा सवाल ये है कि जो करोड़ो पढ़े लिखे और आला तालीम और बड़ी डिग्रियां लिए नौजवान सड़को पर धक्के खा रहे हैं उनको अब से पहले सरकार कितना रोजगार दे पाई है या फिर उनको पकोड़े तलने और ई रिक्शा चलाने के लायक ही समझ लिया गया है?
मुस्लिम उलेमाओं और मुस्लिम समाज के प्रमुख लोगो की बातों पर यकीन किया जाये तो समझ मे आता है ये सब कवायद सिर्फ मुसलमान युवाओ को दीनी तालीम से महरूम रखने और मज़हब से भटकाने की कवायद भर है जिसको मुसलमान किसी भी कीमत पर कामयाब नही होने देगा,जो सरकार मदरसों को अनुदान देने और उनको अंग्रेजी मीडियम स्कूलों के स्तर पर लाने के दावे करती है उसी दावे के कड़वा सच ये भी है कि सरकार मान्यता प्राप्त मदरसो के हजारों लाखों शिक्षकों को कई कई महीनों और कुछ को सालों से तनख्वाह तक नही दे पाई है,मदरसे लाखो करोड़ो आम मुसलमानों के द्वारा दिये जा रहे चंदे के पैसों से चलते हैं और इन मदरसों में पढ़ने वाले 99 फ़ीसदी बच्चे इतने गरीब घर से होते है कि न उनपर खाने के रहने के लिए पैसे होते हैं और फ़ीस चुकाने के लिए मामूली रकम भी उनके पास नही होती और इन मदरसों में ऐसे तमाम बच्चों को रहने खाने पीने समेत मज़हबी तालीम के साथ साथ दुनियावी तालीम भी बिल्कुल मुफ़्त दी जाती है,तो फिर आखिर इन मदरसों और इनमें मज़हबी तालीम हासिल कर रहे छात्रों से सरकार को दिक्कत कियूं है ये बड़ा सवाल आजकल तमाम मुस्लिम समाज के दिलो दिमाग मे तैर रहा है,
दूसरा बड़ा सवाल ये है कि जब सरकार ये कहती है कि हमारा मकसद मुस्लिम बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर और अफसर बनाना है तो सरकार से मुस्लिम समाज का बड़ा सवाल ये भी है कि जो मुसलमान बच्चे सरकारी स्कूलों या फिर इंग्लिश मीडियम स्कूलों से पढ़कर डिग्रियां हासिल कर रहे हैं सरकार उनको अफसर डॉक्टर या सरकारी नौकरियों में लेने के लिए कितने प्रयास कर रही है,ज़ाहिर है सरकार का झूठ बहुत आसानी से पकड़ा जा सकता है मुसलमान नौजवान पढ़ लिखकर सड़को पर धक्के खा रहे हैं पंचर लगा रहे हैं मज़दूरी कर रहे हैं और आख़िर ये सब वो करें भी कियूं नही लाखों करोड़ों लोग उनको यही सब तो करते हुवे देखना चाहते हैं,और कुछ लोग इस समाज को कपड़ो से ही पहचान भी लेते है तो जाहिर है अगर मुसलमान नौजवान नौकरियों पर लगेगा डॉक्टर बनेगा पायलट बनेगा तो फ़िर उनके कपड़े भी बदल जाएंगे और रहन सहन भी बदल जायेगा और इस समाज से नफ़रत करने वाले उनको फिर कैसे पहचानेंगे?कैसे इस समाज का मज़ाक उड़ाएंगे?
अगर सरकार वाक़ई मुस्लिम समाज का भला करना चाहती है इनको समाज की मुख्यधारा में लाना चाहती है तो सबसे पहले मुस्लिम इलाको में स्कूल कायम करने पड़ेंगे उनके लिए नौकरियों का इंतजाम करना पड़ेगा और सबसे बड़ी बात उनके अंदर विश्वास जगाना पड़ेगा,जिसके लिए सरकार को खुले दिल से उन्हें अपने सीने से भी लगाना होगा और उनके अंदर बराबरी का अहसास भी जिंदा करना पड़ेगा,मदरसों के सर्वे में सरकार को कुछ हासिल नही होने वाला कियूंकि चंदे पर चल रहे इन मदरसों में दीन की तालीम दी जाती है मुल्क से मुहब्बत सिखाई जाती है मुस्लिम युवाओ के निकाह पढ़ाने वाले और मस्जिदों में इमामत करने वाले तैयार किये जाते हैं और उनके दिलों में कुरान का ये पैग़ाम भी पैवस्त किया जाता है कि मुल्क से मुहब्बत करना भी आधा ईमान होता है,हालांकि मुल्क और समाज के दुश्मन हमेशा ये इल्ज़ाम लगाते हैं कि मदरसों में आंतकवादी और जिहादी तैयार किये जाते हैं मगर ये अलग बात है कि अपने इस झूठे दावे को ऐसे लोग कभी भी साबित नही कर पाए और ऐसे समाज के दुश्मन इस बात का भी कभी जवाब नही दे पाते कि देश भर में सड़कों पर जब आंदोलन होते हैं गाड़ियां जलाई जाती हैं ट्रेनों को ख़ाक किया जाता है एम्बुलेंस को पलट दिया जाता है और महीनों महीनों सड़को को बंद कर देश की धड़कनें बन्द करने की कोशिश की जाती है तो ऐसे तमाम लोग कौनसे मदरसे के तालिब ए इल्म होते हैं।
फैसल खान (संपादक: यूपी 24 न्यूज़)
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