15 अगस्त----"शोले" की कामयाबी के 47 साल।

15 अगस्त----"शोले" की कामयाबी के 47 साल।
इतिहास में तिथियों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है।हम उन्ही तिथियों के अनुसार अच्छे-बुरे घटनाक्रम को याद रखते हैं और उन्हें मनाते हैं--------विशाल और आज़ाद भारत मे सिनेमा गत 100 वर्षों से भी अधिक समय से मनोरंजन का सरल और सस्ता साधन है।बोलती फ़िल्म "आलम आरा"से "लाल सिंह चड्ढा"तक लाखों हिंदी फिल्में आईं।हज़ारों सितारे दौलत-शोहरत के आसमान पर चमके,हज़ारों गीत लबों पर सजे,हज़ारों संवाद लिखे गए,दोहराए गए।सिनेमा के सितारे करोड़ों भारतीयों के आइडियल बन गए----हर विषय पर फ़िल्म बनी---लगा इसकी सफलता अंतिम है।मदर इंडिया,मुग़ले आज़म,पाकीज़ा,बॉबी,दीवार, हम आपके हैं कौन,मैंने प्यार किया,लैला मजनू,आरज़ू,आंनद, गरम हवा,सनम बेवफा,जय संतोषी मां जैसी अनगिनत फिल्मों का जादू सर चढ़कर बोला------मगर 15 अगस्त 1975 को एक ऐसी फिल्म प्रदर्शित हुई।जिसने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए----जिसकी तपिश बॉक्स आफिस से लेकर दर्शकों के दिलों में आजतक ठंडी नही पड़ी है----निर्माता जे.पी.सिप्पी,लेखक सलीम-जावेद और निर्देशक रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म का नाम "शोले"है-------शोले,ना सिर्फ सदी की बेहतरीन फ़िल्म थी---बल्कि इसके पर्दे के चरित्र जय,वीरू,बसंती,ठाकुर, गब्बर सिंह,कालिया,जेलर,सांभा, सुरमा भोपाली,मौसी,इमाम साहब,असलम,धन्नो सबके सब आज भी लोगों में चर्चा का विषय हैं।
 आरम्भ में यह फ़िल्म असफल क़रार दे दी गई थी-----मगर एक-दो सप्ताह बाद इसने ऐसा ज़ोर पकड़ा के मुम्बई के मिनर्वा टॉकीज़ में दैनिक रूप से 4 शो में साढ़े पांच वर्ष चली।100 जगह सिल्वर जुबली,60 जगह गोल्डन जुबली और कई सिनेमाघरों में डायमंड जुबली हुई थी।जो आजतक किसी भी हिंदी फिल्म का रिकॉर्ड है।
इसके संवाद आज भी दोहराए जाते हैं। अरे ओ सांभा, तेरा क्या होगा कालिया,बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना,होली-कब है, कब है होली----यह छोटे-छोटे आम से संवाद आज भी लोगों की ज़बान पर हैं-----शोले से पहले किसी भी हिंदी फिल्म के संवाद की ओडियो केसिट बाज़ार में नही आई थी।इस फ़िल्म ने जय-वीरू की दोस्ती की मिसाल पेश की।गब्बर सिंह जैसा यादगार खलनायक दिया।
------मगर चंद बातें शोले के साथ अजीब भी थीं----उस समय भारत मे केवल एक अवार्ड वितरण"फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड"के रूप में होता था और प्रमुख पुरस्कारों में सिर्फ अमजद खान(गब्बरसिंह)को खलनायक को पुरुस्कार मिला था।
-------जब-जब हिंदी फिल्मों का ज़िक्र होता है---बात कहनी,संवाद,अभिनय,सफलता की होती है----तब-तब शोले की चर्चा होती है।।

विचार:कमल देवबन्दी (वरिष्ठ लेखक)

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