द्रौपदी मुर्मू आज देश के जिस पद पर पहुंची हैं उसमें उनका जीवन संघर्ष किसी के लिए भी सबक हासिल करने के लिए काफी है।
द्रौपदी मुर्मू ने बेहद गमगीन हालातों का जिस बेबाकी से और हौसले से मुकाबला किया वह सभी को जीवन की एक नई राह दिखाता है।
अपनों से बिछड़ने का उनको खोने का दुख क्या होता है इस बात को भलीभांति द्रौपदी मुर्मू ने नासिर महसूस किया है बल्कि वह इस दौर से गुजरी भी हैं।
1984 में उनकी 3 साल की बेटी की मृत्यु हो गई थी और 2010 से 2014 तक उनके घर से तीन अर्थी उठी जिसमें दो बेटों की मौत हुई और 1 अक्टूबर 2014 को उनके पति उनको इस दुनिया में छोड़ कर चले गए।
डिप्रेशन का शिकार भी रही हैं मुर्मू
जब मुर्मू पर इतने गम और दुखों का पहाड़ टूट पड़ा तब एक समय ऐसा भी था कि वह डिप्रेशन का शिकार हो गई और कई महीने तक डिप्रेशन में रहीं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी उन्होंने हालात का मुकाबला किया और डिप्रेशन से बाहर निकली पहले वह एक शिक्षिका थी लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति की शुरुआत की वह पार्षद बनी उसके बाद विधायक और फिर राज्य सरकार में मंत्री रहीं और झारखंड की राज्यपाल बनने का मौका भी मुर्मू को मिला। दो बेटों और पति की मौत के बाद उन्होंने अपने घर को विद्यालय में तब्दील कर दिया था और आज भी उस घर में विद्यालय चलता है जहां पर वह अपने पति की बरसी व अन्य मौकों पर जाती रहती हैं।
शिब्ली रामपुरी।
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