समान नागरिक संहिता असंवैधानिक और अल्पसंख्यकों के लिए ना काबिले कबूल है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने खड़े किए सरकार की मंशा पर सवाल।

समान नागरिक संहिता असंवैधानिक और अल्पसंख्यकों के लिए ना काबिले कबूल है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने खड़े किए सरकार की मंशा पर सवाल।
नई दिल्ली: देश के मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताते हुए कहा है कि मुसलमानों के लिए ये अस्वीकार्य है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्ला रहमानी ने मंगलवार को इस संबंध में एक बयान जारी किया है। AIMPLB की ओर से ये बयान ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी सरकारें समान नागरिक संहिता लागू करने की योजना बना रही हैं। 

महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्ला रहमानी ने कहा कि, "भारत के संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करने की अनुमति दी है और इसे मौलिक अधिकारों में शामिल रखा गया है।" "इसी अधिकार के अंतर्गत अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों के लिए उनकी इच्छा और परंपराओं के अनुसार अलग-अलग पर्सनल लॉ रखे गए हैं, जिससे देश के कोई क्षति नहीं होती है"
इसमें कहा गया है, "उत्तराखंड या उत्तर प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता का राग अलापना असामयिक बयानबाज़ी के अतिरिक्त कुछ नहीं, प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि इसका उद्देश्य बढ़ती हुई महंगाई, गिरती हुई अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाना और घृणा के एजेंडे को बढ़ावा देना है।"
"ये अल्पसंख्यक विरोधी कदम है, मुसलमानों के लिए ये बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसकी कड़ी निंदा करता है और सरकार से अपील करता है कि वो ऐसे कार्यों से परहेज़ करे।"

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