बहुत सारे लोग टीवी पर समय देखकर रोज़ा इफ्तार करते हैं, इसका क्या हुक्म है?
कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की अल-शरिया हेल्पलाइन से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न :- आज के दौर में बहुत से घरो, कारखानों या हाल वगै़रह में तरावीह की नमाज़ें हो रही हैं, ऐसे में लोगों को इशा की नमाज़ कहां पढ़नी चाहिए, जहां तरावीह पढ़ रहे हैं वहीं या फिर मस्जिद में ?उत्तर :- आमतौर पर लोग जिस घर, कारखाने या हाल वगै़रह जहां तरावीह पढ़ते हैं वहीं इशा की नमाज़ अदा करते हैं, इसमें कराहत है, क्योंकि इसमें जमाअत का, मस्जिद का सवाब नहीं मिलेगा, मस्जिद के एहतराम की पामाली होती है, अगर मस्जिद बहुत दूर है तो उसका मसला अलग है, वरना इशा की नमाज़ अपने इलाक़े, मुहल्ले की मस्जिद जहां अन्य नमाज़ें अदा करते हैं वहीं अदा करें, इशा की नमाज़ मस्जिद में जमाअत से अदा करने के बाद जहां तरावीह पढ़ते पढ़ाते हों वहां चले जायें।
प्रश्न :- क्या रमज़ान के रोज़ों का फिदया ग़रीब मां-बाप को दिया जा सकता है?
उत्तर :- फिद्या उन ही लोगों को देना जायज़ है जिनको ज़कात देना जायज़ है। मां-बाप को ज़कात देना जायज़ नहीं है इसलिये मां-बाद को फिद्या देना भी जायज़ नहीं।
प्रश्न :- क्या नफिल रोज़ों के लिये शौहर से इजाज़त लेना ज़रूरी है ?
उत्तर :- बीवी के लिये शौहर की मौजूदगी में उसकी इजाज़त के बग़ैर नफिल रोज़ा रखना मकरूह है।
प्रश्न :- आजकल बहुत सारे लोग टी.वी पर देखकर रोज़ा इफ्तार करते हैं, इसका क्या हुक्म है?
उत्तर :- इफ्तार का सम्बन्ध सूर्यास्त से है, अगर किसी ने सूर्यास्त के बाद इफ्तार किया हो तो इफ्तार दुरुस्त होगा, इसी के साथ इफ्तार का वक़्त दुआ की कुबूलियत का होता है, लिहाज़ ऐसे वक़्त टी.वी देखने के गुनाह से बचना ज़रूरी है।
प्रश्न :- वाट्सएप पर मैसेज चल रहा है कि मरहूम बाप की तरफ से क़ज़ा रोज़े रखे जा सकते हैं, इसकी क्या हक़ीक़त है ?
उत्तर :- मरहूम बाप या मरहूमा मां की तरफ से क़ज़ा रोज़े रखने से उनका ज़िम्मा फारिग़ नहीं होगा। इसका फिद्या अदा करना होगा। वाट्सएप के मैसेज़ पर उलमा की तस्दीक़ के यक़ीन करना मुनासिब नहीं है।
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