बिछड़ा कुछ इस अदा से, कि रुत ही बदल गई। इक शख़्स सारे शहर को, वीरान कर गया। आह . . . . . हसीब सिद्दीकी साहब।

बिछड़ा कुछ इस अदा से, कि रुत ही बदल गई। इक शख़्स सारे शहर को, वीरान कर गया। 

9 जनवरी यौम ए वफात पर
आह . . . . . . . . . . .हसीब सिद्दीकी साहब
मुल्क की आज़ादी में दारुल उलूम देवबंद के उलेमाओं की तारीख़ इतिहास के पन्नो में दर्ज है, जिसको कोई नकार नहीं सकता। उलेमा ए देवबंद ने आज़ादी के लिए अपने कारनामों से दुनिया में लोहा मनवाया। शेख़ उल हिंद हज़रत मौलाना महमुदुल हसन साहब रहo, स्वतंत्रता सेनानी हजरत मौलाना हुसैन अहमद मदनी रहo व हजारों उलेमाओं ने आज़ादी के लिए जंग लड़ी, और कुरबानी दी, लेकिन कभी भी अंग्रेजो के आगे नहीं झुके। 
दारुल उलूम देवबंद ने हमेशा मुल्क को मजबूत करने के लिए, मुल्क से प्यार करने के लिए, मुल्क में रहने वाले सभी तबके के लोगो को अपना/अपना भाई समझकर कार्य किया व शिक्षा दी है। 
दारुल उलूम की इसी कड़ी में हसीब सिद्दीकी साहब रहoभी थे।
( 15 अगस्त 1936 - 9 जनवरी 2019 )
आप के वालिद ए मोहतरम जनाब मुंशी अज़ीज़ साहब दारुल उलूम में एक ऊंचे पद पर कार्यरत थे । हसीब सिद्दीकी साहब रहo की तालीम दारुल उलूम से हुई। यहीं से आप ने समाज की खिदमत करने का जज़्बा लिया और समाज को माहजनो से छुटकारा दिलाने के लिए सन 1960 में देवबंद "मुस्लिम फंड ट्रस्ट" की स्थापना की और समाज में उन गरीबों को माहजनों से छुटकारा दिलवाया जिनका घर माहजनो के यहां गिरवी रखा होता था, ब्याज पर ही पैसा लेकर लड़कियों की शादी करवाते थे, बच्चो को तालीम दिलाने के लिए ब्याज पर पैसा लेते थे। उन्ही लोगो की मदद को आगे आकर, समाज को उन हालात से निकालने में कामयाबी हासिल की। ये भी एक प्रकार से हसीब सिद्दीकी साहब रहo ने गरीबी के खिलाफ जंग लड़ी और मुल्क का सहयोग किया।
आप में ऐसी कशिश थी, कि उनको देखते ही पानी पानी हो जाते थे। उनका पहनावा निहायत ही सादा था, सुर्ख सफेद रंग, रोशन आंखें, बड़े शीशों वाला चश्मा, सफेद दाढ़ी, देवबंदी टोपी, दरमियाना कद और तरह तरह रंग की शेवानियां जो आप पर बहुत ही जचती थी, आप की बोली में इतना मिठास रहता था कि पहली मुलाकात में ही आदमी को अपना बना लेते थे । 
आप ने देवबंद की आवाम को तरक्की देने के लिए आगे बढ़ाने के लिए एक नए देवबंद बनाने के लिए कई मैदान में काम किया और जिंदगी भर कोशिश की और काम करते रहे, उनकी शक्सियत के पीछे उनका सब पर एतबार था, चाहे वो उनके दोस्त हो, साथ में काम करने वाले हो, उन पर यकीन किया और हमेशा उनका हौसला बढ़ाया हमेशा दूसरों की कामयाबी से खुशी महसूस की। हर किसी को इज्जत दी, इस लिए अल्लाह ताला ने उनको खूब इज्जत व शोहरत से नवाजा।
उनका दिमाग़ हमेशा नए कामों की और चलता था, जिन में -
पब्लिक नर्सरी स्कूल
मुस्लिम फंड कमर्शियल इंस्टीट्यूट
मदनी आई हॉस्पिटल
मदनी टेक्निकल इंस्टीट्यूट
पब्लिक गर्ल्स हाई स्कूल
पब्लिक गर्ल्स इंटर कॉलेज
शैख उल हिंद लाइब्रेरी
मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल
वगेरह इदारो को कायम कराया, जिन से देवबंद व देवबंद के आस पास के आवाम फायदा उठा रहे है और मुल्क ही नही बैरून मुल्क में भी अपने खिदमात को अंजाम दे रहे है। इन इदारों को कायम करके मुल्क की खिदमत में भी पीछे नहीं रहे। इन इदारो को कायम करके देवबंद शहर को नई पहचान दी, और अपना लोहा मनवाया।
उन्होंने इल्मी और अदबी खिदमात के नगर वासियों को नई सुविधा दी, और इतना मसरूफ होने के बावजूद भी शहर व शहर से बाहर भी प्रोग्रामो में हिस्सा लेने के जाते थे।
हसीब सिद्दीकी साहब रहo ने अनगिनत प्रोग्राम की सदारत की और देवबंद मेहमूद हाल में आप की सरपरस्ती में सबसे ज्यादा प्रोग्राम करने वाला हाल भी है, जिससे हसीब साहब की याद ताजा हो जाती है।
हसीब सिद्दीकी साहब रहo की खिदमात का दौरा इतना बड़ा है कि चंद लाइन में इसको उतारना नामुमकिन है, जिक्र नही किया जा सकता। लेकिन देवबंद के लिए और देवबंद वालो के लिए इतना काम कर के गए, देवबंद की तारीख में हसीब सिद्दीकी साहब रहo का नाम हमेशा याद रखा जाएगा।
हसीब सिद्दीकी साहब रहo ने सियासत में भी अपना लोहा मनवाया। आप के सहयोग और कोशिशों से नगर पालिका परिषद का तीन बार चेयरमैन बनवाया, और चौथी बार खुद चेयरमैन बने, चेयरमैन रहते आप ने बहुत ऐसे काम कराए जिनको आज भी याद किया जाता है और याद किया जाता रहेगा, आप वक्त के बहुत ही पाबंद थे। मुस्लिम फंड ट्रस्ट के जैर ए निगरानी सभी ईदारो में तकरीबन 150 अफराद काम करते है, लेकिन कभी भी काम करने वाले किसी भी अफराद को उनसे कोई शिकायत न रही। उनके साथ काम करने इदारो में कभी भी अपने आप को नौकरी पेशा नही समझते थे, बल्कि अपने आप को इदारे को अपना समझकर काम करते थे। 
मेरी जिंदगी के 25 साल उनकी सरपरस्ती में गुजरे, उनसे बहुत कुछ सीखा, हमेशा पास बिठाया करते थे, होंसला बढ़ाते थे, काम करने वाले की कद्र करते थे, मेरी साथ बहुत ही शफ्कत का मामला रहता था, एक पल नाराज़ भी होते थे तो दूसरी ओर प्यार भी करते थे। उन्होंने मुझे कॉमर्शियल इंस्टीट्यूट, मदनी टेक्निकल इंस्टीट्यूट, मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में काम करने जिम्मेदारी दी और इसके अलावा और भी बहुत कामों की जिम्मेदारी दी, जिसको जनाब नवाज़ देवबंदी साहब की सरपरस्ती में बखूबी अंजाम दिया।
हसीब सिद्दीकी साहब रहo के जाने तीन साल बीत जाने के बाद भी ऐसा लगता है कि वो हमारे बीच ही है और वो हमें काम करते हुए देखते रहते है। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी, अल्लाह ताला उनके दरजात बुलंद करें, लोग उनको देवबंद के सर सय्यद भी कहते है। अल्लाह ताला उनके लगाए गए इन पौधों को (इदारो की शक्ल) में, खूब कामयाबी दे, और आवाम को इनसे फायदा पहुचाए। आमीन।

नजम उस्मानी
चेयरमैन: नज़र फाउंडेशन (रजिo) देवबंद

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