दारुल उलूम के कुछ फतवों पर विवाद, राष्ट्रीय बाल आयोग ने यूपी सरकार को पत्र लिखकर दी कार्रवाई करने की हिदायत, दारुल उलूम देवबंद ने रखा अपना पक्ष।
देवबंद: दारुल उलूम देवबंद के कई फतवों को कथित रूप विवादास्पद और भ्रामक बताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत दर्ज कराई है जिसके बाद आयोग ने यूपी सरकार के मुख्य सचिव और जिला अधिकारी को नोटिस जारी करके इस संबंध में जरूरी कदम उठाने की हिदायत दी है।
शिकायतकर्ता ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण (NCPCR) को कुछ फतवों की एक सूची दी है और कहा है कि यह फतवे भारतीय कानून के प्रावधानों के खिलाफ है जो इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर मौजूद हैं।
उधर इस संबंध में दारुल उलूम देवबंद का कहना है कि इस मामले की मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली, अभी कोई लिखित नोटिस या पत्र प्राप्त नहीं हुआ है, नोटिस मिलने पर कानून की रोशनी में उसका जवाब दिया जाएगा।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कथित रूप से ‘गैरकानूनी और भ्रमित करने वाले’ फतवों को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार से दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट की जांच करने के लिए कहा है । बच्चों के अधिकारों से संबधित शीर्ष निकाय ने शनिवार को राज्य के मुख्य सचिव से यह भी कहा कि जब तक इस तरह की सामग्री हटा नहीं ली जाती है तब तक वेबसाइट को प्रतिबंधित कर दिया जाए।
आयोग ने कहा कि एक शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की गई है जिसमें आरोप लगाया गया है कि वेबसाइट पर फतवों की सूची है जो देश के कानून के अनुसार प्रदान किए गए प्रावधानों के खिलाफ हैं।
मुख्य सचिव को लिखे पत्र में आयोग ने कहा है, ‘शिकायत पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की धारा 13 (1) (जे) के तहत संज्ञान लेते हुए शिकायत और वेबसाइट की जांच करने के बाद यह पता चला है कि लोगों द्वारा उठाए गए मसलों के जवाब में दिए गए स्पष्टीकरण और उत्तर, देश के कानूनों और अधिनियमों के अनुरूप नहीं हैं ।’
पत्र में कहा गया है इस संगठन की वेबसाइट की पूरी तरह से जांच की जाए, ऐसी किसी भी सामग्री को तुरंत हटा दिया जाए।
आयोग ने राज्य सरकार से भारत के संविधान, भारतीय दंड संहिता, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए संस्थान के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भी कहा है। एनसीपीसीआर ने उत्तर प्रदेश सरकार को 10 दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है।
आयोग ने इस्लामिक मदरसा द्वारा लोगों को दिए गए उत्तरों की जांच का हवाला देते हुए सहारनपुर के जिलाधिकारी को भी लिखा है।
ये फतवा।
शिकायतकर्ता के अनुसार, कुछ फतवे में कहा गया है कि दारूल उलूम देवबंद कहता है कि बच्चा गोद लेना गैरकानूनी नहीं है, बल्कि सिर्फ बच्चे को गोद लेने से वास्तविक बच्चे का कानून उस पर लागू नहीं होगा बल्कि यह आवश्यक होगा कि मैच्योर होने के बाद वह परिपक्व होने के बाद उससे शरिया पर्दा का पालन करें। उसके परिपक्व होने के बाद दत्तक बच्चे को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा और बच्चा किसी भी मामले में वारिस नहीं होगा।
आगे दावा किया कि इसी तरह के फतवे दारुल उलूम देवबंद में स्कूल बुक सिलेबस, कॉलेज यूनिफॉर्म, गैर-इस्लामिक माहौल में बच्चों की शिक्षा, लड़कियों की उच्च मदरसा शिक्षा, शारीरिक दंड आदि से संबंधित हैं। एक फतवे में कथित तौर पर कहा कि टीचर को बच्चों को पीटने की अनुमति है, हालांकि, आरटीई अधिनियम, 2009 के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड प्रतिबंधित है।
दारुल उलूम देवबंद ने रखा अपना पक्ष।
उधर, इस संबंध में दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने बताया कि उन्हें यह जानकारी मीडिया के माध्यम से हुई है, संस्था के पास अभी कोई लिखित में नोटिस या पत्र नहीं पहुंचा है, नोटिस मिलने पर उस का जायजा लेकर कानून की रोशनी में उसका जवाब दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि फतवा शरीयत की रोशनी में फतवा लेने वालों को दिया जाता है, फतवा शरीयत के मानने वालों और उस पर अमल करने वालों के लिए होता है यह कोई जबरदस्ती या थोपने वाला कदम नहीं होता है। फतवा में मसले की शरीयत की रोशनी में मात्र जानकारी दी जाती है।
समीर चौधरी।
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