देवबंद सीट पर हमेशा रहा ठाकरों का कब्जा, सपा और भाजपा ने फिर जताया राजपूत समाज पर भरोसा, जानिए क्या कहते हैं देवबंद सीट के आंकड़े।

देवबंद सीट पर हमेशा रहा ठाकरों का कब्जा, सपा और भाजपा ने फिर जताया राजपूत समाज पर भरोसा, जानिए क्या कहते हैं देवबंद सीट के आंकड़े।
विश्व में अपनी अलग पहचान रखने वाली देवबंद शहर की विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि यहां से समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनों ने ही ठाकुर समाज से उम्मीदवार चुने हैं। बजेपी के बाद सपा ने भी पूर्व विधायक माविया अली के मुकाबले पूर्व राज्य मंत्री राजेंद्र सिंह राणा के बेटे कार्तिकेय राणा को टिकट दिया है।
हालांकि कुछ लोग इस बात से नाराज हैं कि माविया अली को टिकट नहीं मिला, यह मुद्दा सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
देवबंद में ठाकुर समाज के करीब 30 हजार और इतने ही गुर्जर समाज के वोट है जबकि दलितों के वोट 70 हजार के लगभग है वही मुस्लिम वोटों की संख्या एक लाख दस हजार के आसपास बताई जाती है।

ये हैं देवबंद सीट के आंकड़े.
हालांकि, अगर हम देवबंद विधानसभा सीट के आंकड़े पेश करें तो आपको जानकर हैरानी होगी कि मुस्लिम धार्मिक पहचान वाले इस शहर की विधानसभा सीट पर आजादी के बाद से ठाकुर समाज का दबदबा रहा है। अधिक आश्चर्य की बात यह है कि मुस्लिम समुदाय को इस विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने का अवसर सत्तर वर्षों में केवल दो बार मिला है, हालांकि एक बार तो केवल एक वर्ष के लिए माविया अली ने 2016 का उपचुनाव जीता था। समाजवादी पार्टी भी यहां से 2012 में सिर्फ एक बार ही जीती है, उस वक्त दिवंगत राजेंद्र राणा जीते थे।
कहने की जरूरत नहीं है कि हर चुनाव में देवबंद पर लगभग सभी पार्टियों की नजर रहती है, देवबंद ने बड़े राजनेता पैदा किए लेकिन मुस्लिम राजनीति में ये शहर अभी भी बहुत पीछे है।
देवबंद में अभी 3,47,527 मतदाता हैं। यहां 1,85,901 पुरुष मतदाता और 1,61,611 महिला मतदाता हैं। अतीत पर नजर डालें तो देवबंद सीट 1952 से 2017 तक के चुनावों की सबसे खास बात यह है कि यहां ठाकर समुदाय के ज्यादातर विधायक चुने गए हैं, ऐसा केवल तीन बार हुआ जब गैर-राजपूत समुदायों के विधायक चुने गए। माविया अली ने 2016 के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में देवबंद सीट जीती थी। इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में गुर्जर समुदाय के मनोज चौधरी ने बसपा के टिकट पर सपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह राणा को हराया था।

पीछे मुड़कर देखें तो देवबंद के पूर्व चेयरमैन मौलाना उस्मान ने जनता पार्टी के टिकट पर 1977 का विधानसभा चुनाव जीता था। उन्होंने ठाकुर महावीर सिंह को हराया और देवबंद का प्रतिनिधित्व गैर-राजपूत के रूप में किया। इस सीट पर अक्सर राजपूतों का दबदबा रहा। ठाकुर फूल सिंह ने तीन बार ये सीट जीती। 1952, 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव में फूल सिंह ने जीत हासिल की थी। ठाकुर महावीर सिंह भी यहां तीन बार जीते। महावीर सिंह 1969, 1980 और 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। 1957 में यशपाल सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते थे।
1991 में जनता दल से वीरेंद्र ठाकुर, 1993 में बीजेपी से शशिबाला पुंडीर, 1996 में बीजेपी से सुखबीर सिंह पुंडीर, 2002 में बीएसपीसी से राजेंद्र सिंह राणा, 2007 में बीएसपीसी से मनोज चौधरी, 2012 में एसपी से राजेंद्र सिंह राणा, 2016 में राजेंद्र राणा की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस से माविया अली और 2017 में भाजपा के कुंवर बृजेश सिंह ने यहां जीत हासिल की है।
अब 2022 की तैयारी जोरों पर है। भाजपा और समाजवादी पार्टी दोनों ने ठाकुर समाज को टिकट दिया है। जबकि मायावती ने एक बार फिर गुर्जर समाज से प्रत्याशी को चुना है।
इस बीच, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन ने एक बड़ा कदम उठाते हुए मदनी परिवार के उमैर मदनी को अपना उम्मीदवार बनाया है, हालांकि कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। वही माविया अली के अगले कदम पर भी सभी की नजरें टिकी हैं।
खास बात यह है कि देवबंद से चुने गए ज्यादातर विधायक सत्ता में रहे हैं लेकिन विकास के मामले में अंतरराष्ट्रीय पहचान रखने वाला यह कस्बा और क्षेत्र आज भी बहुत पीछे है।

विषेश: समीर चौधरी।

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