(शिब्ली रामपुरी)
उस दौर के बारे में सोचकर भी इंसान सिहर उठता है कि जब मासूम बच्चियों को पैदा होते ही जमीन में गाड़ दिया जाता था या गला दबाकर उनका कत्ल कर दिया जाता था. उस दौर में अज्ञानता इतनी चरम सीमा पर थी कि इस घिनौने कार्य को लोग बड़ाई (कारनामें)के तौर पर बयान किया करते थे कि देखो उन्होंने तीन बच्चियों का कत्ल किया है किसी ने चार को पैदा होते ही ज़मीन में ज़िंदा गाड़ दिया और जिसने सबसे ज्यादा बच्चियों की हत्या की हुई होती थी तो समाज में उसे अलग ही दृष्टि से देखा जाता था उसका बड़ा सम्मान होता था.इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दौर में अज्ञानता की क्या सीमा थी. उस दौर में महिलाओं को वो अधिकार दिलाना कि जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की होगी. पहले जहां मासूम लड़कियों को पैदा होते ही जिंदा गाड़ दिया जाता था या किसी और तरीके से उनकी हत्या कर दी जाती थी तो वही समाज में उनको वह सम्मान मिला कि पूरी दुनिया देखती रह गई. मासूम बच्चियों की हत्या ना सिर्फ बंद हो गई बल्कि उनको सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा और माहौल इतना खुशहाल/बेहतर बन गया कि जिसके यहां जितनी बेटियां पैदा होती थी वह उतना ही अपने आप को भाग्यशाली समझता था. आज पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की बात होती है उनको लेकर बड़े-बड़े कानून भी बनाए जाते हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतना कुछ होने के बावजूद भी महिलाओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा है.आए दिन ऐसी कई घटनाएं हमें काफी कुछ सोचने पर मजबूर करती रहती हैं कि आखिर महिलाओं पर हो रहा अत्याचार कब रुकेगा. पैगंबर साहब की महिलाओं के बारे में जो शिक्षा उस दौर में अनमोल थी वह आज भी उतनी ही अहमियत रखती है यदि उसकी वास्तविकता को समझ कर उस पर पूरी तरह से अमल किया जाए तो हम समाज में एक बेहतर माहौल न सिर्फ कायम कर सकते हैं बल्कि महिलाओं के जो अधिकार हैं जो संविधान ने महिलाओं को अधिकार दिए हैं हम उनको वह अधिकार दिलाने में भी काफी अहम रोल निभा सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पैगंबर साहब की शिक्षा पर शत प्रतिशत अमल किया जाए.
मशहूर शायर डॉक्टर इकबाल कुछ यूं नज़राना ए अक़ीदत पेश करते हैं।
तेरी निगाह से ज़र्रे भी मेहर ओ मा बने
गदाए बे सरो सामां जहांपनाह बने
हुज़ूर ही के करम ने मुझे तसल्ली दी
हुज़ूर ही मेरे ग़म में मेरी पनाह बने
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