बॉलीवुड में सनी देओल के 40 साल। 19 अक्टूबर-----सनी देओल के जन्म दिन पर विशेष।
चमचमाती फिल्मी दुनिया में 1980 के दशक तक पुराने सितारे अब मांद पड़ने लगे थे----राजकपूर, दलीप कुमार, देवानन्द, सुनील दत्त, राजिंदर कुमार,राजकुमार, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र----सभी ढ़लान पर थे----अब युवा पीढ़ी----भरपूर तैयारी के साथ फ़िल्मी पर्दे पर एंट्री देने वाली थी-------इसकी शुरुआत 1980 में राजिंदर कुमार के बेटे कुमार गौरव ने"लव स्टोरी"से की ।यह एक बड़ी हिट थी-----मगर अफसोस पहली और आख़री।1981 में सुनील दत्त के बेटे संजय दत्त ने "रॉकी"से शुरुआत की।यह शुरुआत औसत थी----मगर डूबते-तैरते,हालात से लड़ते संजय ने फ़िल्म के पर्दे पर बड़ी लम्बी इनिंग खेली--------।
5 अगस्त 1983 को 19 अक्टूबर 1956 को सानहेवाल(पंजाब)में जन्मे धर्म पाजी के बड़े बेटे सनी देओल की "बेताब"रिलीज़ हई----यह बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई।फ़िल्म ने गोल्डन जुबली मनाई।सनी के दूसरी फिल्म"सोनी महिवाल"एक वर्ष बाद 29 सितम्बर को आई।जो औसत साबित हुई।उसके बाद अर्जुन,पाप की दुनिया,वर्दी,त्रिदेव,चालबाज़, आग का गोला,मजबूर,क्रोध में सनी कामयाब रहे।
धर्म पाजी के चाहने वाले उनमें धर्मपाजी को तलाश रहे थे---दर्शकों की यही उम्मीद---बहुत से फिल्मी सितारों के बेटे-बेटियों को नाकामी की ग़रत में ले गई।
फिर 22 जून 1990 को धर्मेंद्र प्रस्तुति---घायल---प्रदर्शित हुई।जिसका निर्देशन उस समय युवा और नए निर्देश राजकुमार संतोषी ने किया था।राज कुमार संतोषी ने सनी में छुपी प्रतिभा को बाहर निकाला।उसका बाद यौद्धा,नरसिम्हा,लुटेरे,दामिनी,डर,जीत,घातक,अजय,ज़िद्दी,बॉर्डर,अर्जुन पंडित,इंडियन,मां तुझे सलाम की छोटी-बड़ी सफलताओं के दुवारा------अपनी एक इमेज स्थापित की---------जिसमे उनके जानदार एक्शन के साथ-साथ दमदार संवाद अदायगी भी थी--------जो उनकी पहचान बन गयी।"यह मज़दूर का हाथ है कातिया---लोहे को पिंघलाकर उसका आकार बदल देता है"।"यह ढ़ाई किलो का हाथ जब किसी पर पड़ता है ना------आदमी उठता नही,उठ जाता है"।"मिलती है, तो बस ताऱीख, तारिख़ पे तारीख़---इंसाफ नही मिला"।"अशरफ अली तुम्हारा पाकिस्तान जिंदाबाद होगा---मगर हमारा हिंदुस्तान ज़िंदाबाद था,है और रहेगा"।
15 जून 2001 को प्रदर्शित अनिल शर्मा के निर्देशन में बनी "ग़दर---एक प्रेमकथा" ने हर तरह से ग़दर मचा दिया----फ़िल्म ने 80 करोड़ का कारोबार कर,नए विवादों को जन्म दिया----यह सनी के फिल्मी कैरियर के चमचमाता दौर था-----फिर वही हुआ जो सबके साथ होता है----हर फिल्म में सनी पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते आए----फिल्मों का मिज़ाज बदलने लगा----उम्र जिस्म और चेहरे की चुगली करने लगी-----इस बीच अपने और यमला पगला दिवाना में फिर सनी ने जलवे बिखेरे----मगर तब तक देर हो चुकी थी।आज सनी आर.बाल्की औरअनिल शर्मा(अपने-2,ग़दर-2)के साथ नई पारी की फिर से शुरुआत में व्यस्त हैं----सनी को घायल,दामिनी के लिए अभिनय के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले----उन्हें घायल के लिए"फ़िल्मफ़ेयर परुस्कार"भी मिला था।सनी ने दिल्लगी,घायल वन्स अगैन, पल-पल दिल के पास, का निर्देशन भी किया।मगर तीनों फिल्में असफल रहीं-------सनी ने लोकसभा चुनाव में पंजाब के गुरदासपुर से सांसद की सीट जीत तो ली मगर यह भूमिका भी उन्हें रास नही आई।शराब,सिगरेट,फिल्मी पार्टियों,राजनीति से दूर सनी ने अपने पिता की इमेज से हटकर एक अपनी इमेज क़ायम की--------वो अपने पिता की तरह सादगी का भी शिकार रहे----शायद---यही वजह है कि मुकम्मल अदाकार होने के बावजूद वो उतनी फिल्में और उतने अभिनय के पुरस्कार ना पा सके-----जितनी उनकी-----योग्यता थी।
विचार:कमल देवबन्दी (समीक्षक)
0 Comments