"देवबंद टुडे" द्वारा शिक्षा और साहित्य सेवाओं के लिए डॉ. नवाज़ देवबंदी और डॉ. रक़्शनदा रूही मेहदी को किया गया सम्मानित, शिक्षा, साहित्य और मानवीय मूल्यों के गिरते स्तर पर बुद्धिजीवियों ने व्यक्त की चिंता।

देवबंद: गांधी जयंती के अवसर पर उर्दू-हिंदी पाक्षिक "देवबन्द टुडे" की ओर से शिक्षा, उर्दू साहित्य और पर्यावरण में अमूल्य योगदान के लिए शिक्षाविद, प्रसिद्ध शायर डॉक्टर नवाज़ देवबन्दी और उर्दू की वरिष्ठ लेखिका डॉक्टर रक़्शनदा रूही (दिल्ली) को प्रशस्तिपत्र, पौधे और बुके देकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर डॉक्टर नवाज़ देवबन्दी ने अपने संबोधन मे कहा कि" आज हमारे पास परिवार और समाज के प्रति शिकायतें बहुत हैं। मगर हम इस क्षेत्र मे इन्वेस्ट कम कर रहे हैं इसलिए हमारे सम्मान मे कमी आई है। उन्होंने कहा कि हमे सर्वप्रथम अपने परिवार को पूर्ण सम्मान, समय देना चाहिए।आज हम अपने बच्चों पर भरपूर पैसा खर्च कर रहे हैं। मगर उन्हें समय नही दे रहे हैं इसिलए वर्तमान पीढ़ी मे सम्मान,आदर और सेवाभाव की बड़ी कमी है। इनके अलावा पब्लिक गर्ल्स इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल सबा सिद्दीक़ी,युवा लेखक व शायर अब्दुर्रहमान सैफ ने भी अपने विचारों मे वर्तमान में शिक्षा, साहित्य के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की।
इस अवसर उपस्थित शायरों ने अपने बहतरीन कलाम से नवाज़ा। युवा शायर वाली वक़ास देवबन्दी ने पढ़ा के "मेरे ज़ख्मों पे नमक रख के मसीहा ने मेरे--शर्त रख दी है के आवाज़ नही कर सकते"। युवा पीढ़ी के नुमाइंदा शायर काशिफ सिद्दीक़ी ने अपने जज़्बात का इज़हार अपने शेर मे कुछ यूं कहा "कहां जाते हो यूं पहलू बदल के--अभी कुछ शेर बाक़ी हैं ग़ज़ल के"। लेखक, शायर अब्दुर्रहमान सैफ ने नसीहत करते हुए पढ़ा के "ख़मोश रहने की आदत भी डालिए साहब--के बोलना ही नही ज़बान का मक़सद"। वर्तमान हालात पर तंज़ करते हुए वरिष्ठ शायर मास्टर शमीम किरतपुरी ने पढ़ा के "मिलनसारी, मोहब्बत, भाईचारा था हर इक जानिब--सकूँ से लोग रहते थे हमारी हुक्मरानी मे"। अंत मे डॉक्टर नवाज़ देवबन्दी ने अपनी विशेषशेली मे पढ़ा के "आंख मानूस है अंधेरों से--रोशनी तीर बनके चुभती है"।
 सम्मान सभा में मंजा परवीन, नजम अहमद सिद्दीक़ी, शबाना सफवान, शादाब खान, शाह फैसल मसूदी, सय्यद वजाहत शाह, नबील मसूदी, आयशा उस्मानी, इकराम अंसारी, दीन रज़ा, ज़ैनब शाह और समी उपस्थित रहे।

समीर चौधरी/ रियाज़ अहमद।
महताब आज़ाद।

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