यूसीसी को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली में सांसदों और मुस्लिम संगठनों के साथ की बैठक, बोले मदनी, सामान नागरिक संहिता से समानता एवं न्याय के सांवैधानिक सिद्धांतों को नुकसान पहुंचने की आशंका।

नई दिल्ल: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर दिल्ली में जमीयत उलमा-ए-हिंद की सभा का आयोजन हुआ। इसमें यूसीसी से संबंधित आशंकाओं विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक और आदिवासी समुदाय के सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों को समाप्त किए जाने के प्रयासों पर चर्चा की गई। 
मंगलवार को दिल्ली के ओबरॉय होटल में आयोजित हुई सभा में जमीयत अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी के निमंत्रण पर संसद सदस्यों और मुस्लिम संगठनों के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर अपने उद्घाटन भाषण में मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता से धार्मिक विविधता, अल्पसंख्यकों के अधिकार और समानता एवं न्याय के सांवैधानिक सिद्धांतों को नुकसान पहुंचने की आशंका है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की ताकत इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में निहित है। अगर यूसीसी को लागू किया गया तो संभवत इस विविधता को नुकसान पहुंचेगा। मौलाना मदनी ने मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और हितों की रक्षा करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। 
सभा में सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील एमआर शमशाद ने पावर प्वाइंट द्वारा यूसीसी के संभावित नुकसान पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। तर्कों से यह साबित किया कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए भी हानिकारक है। उदाहरण देकर साबित किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीया एक्ट) के तहत पूरे परिवार के भरण-पोषण का भार पति या पिता पर लागू होता है। लेकिन जिस समानता के आधार पर यूसीसी लाई जा रही है, उससे भरण-पोषण का भार पत्नी या मां पर भी समान रूप से लागू हो जाएगा। 

जमीयत की सभा में संसद सदस्यों ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी बड़े कानून को बनाने से पहले संबंधित वर्गों की चिंताओं को दूर करने के महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, सामूहिकता और सामाजिक सद्भाव के मूल्यों को बनाए रखने के लिए अपने समर्थन का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार राजनीतिक स्वार्थों के लिए ऐसे मुद्दों को जानबूझकर उठा रही है। अगर यूसीसी से संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ तो हम संसद में इन मुद्दों को यथासंभव उठाएंगे। 

समीर चौधरी।

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