अजमेर शरीफ को बदनाम करने की गरज से बनाई गई फिल्म समाज को बांटने की कोशिश, मौलाना महमूद मदनी ने की फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग।

देवबंद: जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने अजमेर 92 के नाम से रिलीज होने वाली फिल्म को समाज में दरार पैदा करने का प्रयास बताया है। मदनी ने केंद्र सरकार से इस फिल्म को प्रतिबंधित करने की मांग की है।

रविवार को जारी बयान में मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें शांतिदूत के रूप में जाना जाता है। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की नगरी और उनकी दरगाह को बदनाम करने की गरज से बनाई गई अजमेर 92 फिल्म समाज को बांटने की कोशिश है, इसलिए इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। मदनी ने कहा कि वर्तमान समय में आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोडऩे के लिए फिल्मों एवं इंटरनेट मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। जो कि पूरी तरह निराशाजनक और हमारी साझी विरासत के लिए हानिकारक है। कहा कि फिल्म में अजमेर में वर्ष 1992 में घटित हुई घटना का जो रूप बताया जा रहा है, वह पूरे समाज के लिए बेहद दुखद और घिनौना है। इसके विरुद्ध धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर सामूहिक संघर्ष करने की जरूरत है।

समीर चौधरी।

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