मुंबई: जमीयत उलेमा हिंद की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन मुंबई के अंजुमन इस्लाम ग्राउंड में प्रबंध समिति की महत्वपूर्ण बैठक में मौलाना सय्यद अरशद मदनी ने स्पष्ट रूप से कहा देश की आजादी के बाद कांग्रेस ने जो लचीली नीति अपनाई थी। उससे कांग्रेस और देश दोनों को नुकसान पहूँचा, उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी की नृशंस हत्या धर्मनिरपेक्षता की हत्या के बराबर थी और यहीं से देश में साम्प्रदायिक की जड़ें और गहरी हुईं। मौलाना आजाद की पुस्तक "इंडियन्स फ्रीडम" का लंबा अंश जिसमें मौलाना आजाद ने महात्मा गांधी की हत्या के बारे में विस्तार से लिखा है और स्पष्ट रूप से लिखा है कि सरकार द्वारा उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई जबकि उन्हें मारने की साजिश थी, गांधीजी की हत्या के बाद जय प्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने साफ कहा था कि गृहमंत्री गांधीजी की हत्या के आरोप से बच नहीं सकते।
मौलाना ने कहा कि साम्प्रदायिकता के खिलाफ कांग्रेस की लचीली नीति का खामियाजा भुगतना पड़ा, कांग्रेस को भी खुद इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। मौलाना मदनी ने कर्नाटक के लिए कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का जिक्र करते हुये कहा सांप्रदायिक संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया गया है। मौलाना मदनी ने कहा कि अगर यही नीति आजादी के बाद अपनाई गई होती तो देश में यह स्थिति नहीं होती। इस लचीली नीति ने कई ऐसे नेताओं को भी सत्ता में ला दिया जिनकी राजनीतिक विचारधारा कांग्रेस की विचारधारा से भिन्न थी। उन्होंने कहा की जमीयत उलमा-ए-हिन्द के नेतृत्व से कांग्रेस ने यही वायदा किया था। उन्होंने कहा की इस देश की प्यारो मोहब्बत इतिहास है, मौलाना मदनी ने कहा की हजरत आदम अलैहिस्सलाम को भी जन्नत से भारत में उतारा गया, दुनिया की तमाम इंसानी नस्लों का मूल भारत है। सभी लोग मनुष्य के रूप में हमारे भाई हैं। यही मूल दृष्टिकोण है जो जमीयत उलमा हिंद, उसके अभिजात वर्ग और संयुक्त राष्ट्रवाद का आधार है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि आजादी के तुरंत बाद देश का बंटवारा मुसलमानों के लिए विनाशकारी साबित हुआ, इसके पीछे धर्म और दो राष्ट्र की विचारधारा थी जो हमारे बुजुर्गों की नजर में गलत थी और गलत है और आने वाले दिनों तक गलत रहेगी। उन्होंने कहा की हमारे पूर्वज संयुक्त राष्ट्र के विचार के पक्षधर थे, इसलिए जमीयत उलमा-ए-हिंद अपने पूर्वजों के इसी सिद्धांत पर क़ायम है और हमेशा रहेगी, साम्प्रदायिक विचारधारा इस देश के प्रेम, भाईचारे और भाईचारे के सदियों पुराने इतिहास में आग लगा रही है, कभी बल के बल पर मस्जिद बनाती है, तो कभी हमारी संस्थाओं, संपत्तियों और स्मारकों को नष्ट करने की साजिश करती है। देश आजाद हुये 75 साल हो गये लेकिन अभी भी दंगे नहीं रुके। और सांप्रदायिकता के खिलाफ कोई कानून नहीं बनाया गया बड़ा सवाल यह है कि मुसलमान क्या करे? यह एक ऐसा विषय है जिस पर हमें मिल कर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।उन्होंने धर्मत्याग के प्रलोभन का भी उल्लेख किया और कहा कि मुसलमानों को विशेषकर उत्तर भारत के मुसलमानों को धर्मत्याग को रोकने के लिए व्यावहारिक प्रयास के तहत लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूल और कॉलेज खोलने चाहिए। इसलिए शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए और हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए कि देश के हिन्दू भाई भी अपनी लड़कियों को इन शिक्षण संस्थानों में भेजने के लिए मजबूर हों। उन्होंने आगे कहा कि देश का बहुसंख्यक धर्मनिरपेक्ष है, कर्नाटक में हाल ही में हुए चुनाव का उदाहरण देते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि यह चुनाव हिंदू-मुस्लिम दुश्मनी के आधार पर लड़ा गया, लेकिन अधिकांश लोगों ने इसे खारिज कर दिया, इसलिए देश की अनमोल और समृद्ध विरासत और इतिहास को जीवित रखना हम सभी का कर्तव्य है। ऐसा करके हम इस्लाम के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर कर सकते हैं। उन्होंने अंत में कहा कि हम पर आरोप लगाया जा रहा है कि हम कानूनी सहायता प्रदान करके आतंकवादियों को बचा रहे है जबकि हमारी हमेशा से यह स्थिति रही है कि जो लोग आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाते हैं उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि निर्दोष लोगों को आतंकवादी घोषित कर दिया जाए और इसकी आड़ में जेल में डाल दिया जाए। अदालतों के फैसलों से पता चला है कि ज्यादातर मामलों में गिरफ्तार किए गए लोग निर्दोष थे।
इस बैठक में देश भर से बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रबंधन समिति के पहले सत्र में दो उपाध्यक्ष मौलाना अब्दुल अलीम फारूकी और मौलाना सय्यद असजद मदनी और हाजी जमाल को कोषाध्यक्ष के रूप में आम सहमति से चुना गया।
समीर चौधरी।
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