सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और पीएम मोदी की नसीहत के बाद भी आखिर क्यों जारी है हेट स्पीच का सिलसिला?

(शिब्ली रामपुरी)
देश की सबसे बड़ी अदालत ने पिछले साल भी हेट स्पीच को लेकर बहुत बड़ी बात कही थी और टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट को हेट स्पीच के लिए बड़ा जिम्मेदार बताया था और कहा था कि डिबेट में नफरत फैलाने वाली सामग्री नहीं परोसी जानी चाहिए।
कुछ दिन पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अपनी पार्टी के नेताओं को भी नसीहत की थी कि वह गैरजरूरी बयानबाजी ना करें.
 अब सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जो कुछ कहा है वह काबिले तारीफ है और जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है कि भारत में हेट क्राइम की कोई जगह नहीं है हेट स्पीच को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है वह याचिका 62 साल की उम्र के एक व्यक्ति कज़ीम अहमद शेरवानी ने दाखिल की थी उन्होंने बताया था कि 2021 में जुलाई में नोएडा के सेक्टर 37 में अलीगढ़ जाने वाली बस का वह इंतजार कर रहे थे तभी कुछ लोगों ने उन्हें लिफ्ट देने की पेशकश की इसके बाद उन्होंने मुस्लिम होने पर टारगेट किया और गाली-गलौज करते हुए बदसलूकी और उनके साथ मारपीट भी की गई. इसके बाद पीड़ित अजीम अहमद नोएडा के सेक्टर 37 में एक पुलिस चौकी पहुंचे वहां पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई जिसके बाद उन्होंने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ी काबिले तारीफ बात कही है और यह कहा है कि नफरत फैलाने वाले भाषणों पर कोई समझौता नहीं हो सकता और अगर सरकार उसे समस्या माने तभी इसका समाधान तलाशा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह तक कहा है कि किसी भी घृणा अपराध से अपने नागरिकों को बचाना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है.
एक ओर जहां देश की सबसे बड़ी अदालत से लेकर पीएम मोदी तक हेट स्पीच मामले को लेकर नसीहत और टिप्पणी कर चुके हैं वहीं यह बेहद ही अफसोसनाक बात है कि आए दिन हम ऐसे वीडियो या फोटो देखते हैं कि जो सीधे तौर पर नफरत फैलाने का काम करते हैं किसी ना किसी धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती है. ऐसे में अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह किसी भी तरह की हेट स्पीच को बढ़ावा देने वाले मामले को गंभीरता से ले और नफरत फैलाने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

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