ईदमिलादुन्नबी: मोहसिन ए इंसानियत पैगंबर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.)साहब का महिलाओं के अधिकारों पर पैगाम।

ईदमिलादुन्नबी: मोहसिन ए इंसानियत पैगंबर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.)साहब का महिलाओं के अधिकारों पर पैगाम।

 जो आपने अपने आख़री हज के मौके पर दिया था।
(शिब्ली रामपुरी)
आज पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की बात होती है और बहुत देशों में महिलाओं को अधिकार भी दिए गए हैं लेकिन जरा याद कीजिए वो दौर कि जिस दौर में लड़की को पैदा होते ही कत्ल कर दिया जाता था जिंदा जमीन में गाड़ दिया जाता था और हालात इतने ख़राब थे कि औरत और जानवर में कोई फर्क नहीं समझा जाता था.क्यूंकि ज़ुल्म ही उन पर इस हद तक होता था. उस अज्ञानता के दौर में महिलाओं को समान अधिकार बल्कि कई मामलों में मर्दों से बढ़कर भी अधिकार दिए गए. कहां तो पैदा होती बच्चियों से लेकर लड़कियों और बूढ़ी औरतों तक पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ना अपनी शान समझा जाता था वहीं फिर महिलाओं को वो अधिकार प्राप्त हुए कि पूरी दुनिया हैरत में पड़ गई यहां तक कि ख़ुद महिलाओं ने वो इज़्ज़त पाई वो सम्मान पाया कि जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी.

पैगंबर साहब ने अपने आख़री हज जिसे हज्जुतुल विदा भी कहते हैं उसमें एक ऐसा संदेश दिया था जो सिर्फ मुसलमानो के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों के लिए आज भी प्रेरणादायक है. उनके उसी पैगाम में महिलाओं के हुकुक़ उनके अधिकारों के बारे में जो कुछ कहा गया उसमें से कुछ संक्षिप्त यहां पर पेश है.

औरतों के बारे में अल्लाह से डरो, क्योंकि तुमने उन्हें अल्लाह की अमानत के तौर पर हासिल किया है, और अल्लाह के कलीमात (अहकाम) के तहत उनके सतर तुम्हारे लिए हलाल हुए।

 खबरदार! तुम्हारे लिए औरतों से अच्छे बर्ताव की वसीयत है, क्योंकि वह तुम्हारी पाबंद है और उसके सिवा तुम किसी मामले में हक्के मिल्कियत नहीं रखते।
 
लोगों, जिस तरह औरतों के कुछ हुकूक तुम्हारे ज़िम्मे हैं , उसी तरह उन पर भी तुम्हारे कुछ हुकूक वाजिब है। 
जहां तक तुम्हारे हुक़ूक़ का ताल्लुक है तो वह जो तुम्हारी औरतों पर वाजिब है तो वह यह है:

 वह कोई काम खुली बे हयाई का न करें। 
वह तुम्हारा बिस्तर किसी गेर शख्स से पामाल न कराए।
वह तुम्हारे घर में किसी ऐसे शख्स को दाखिल ना होने दें जिससे तुम ना पसंद करते हो, मगर यह कि तुम्हारी इजाजत से। 
अगर वह औरतें इन बातों की खिलाफ वर्ज़ी करें तो तुम्हारे लिए इजाजत है तुम उन्हें बिस्तरों पर अकेला , तन्हा छोड़ दो।
 उन पर सख्ती करो, (अगर मारना ही चाहो)सख़्त तकलीफ वाली चोट ना मारो।

  देखो , कुछ हक उनके भी तुम्हारे ऊपर आईद होते हैं :

 यह के खाने, पीने, पहनने, ओढ़ने के बारे में उनसे अच्छा सुलूक करो, और हैसियत के मुताबिक उनका खाना कपड़ा तुम्हारे ज़िम्मे है।
 औरतें मारुफ़ात में तुम्हारी नाफरमानी ना करें। 
और अगर वह फरमाबरदारी करें तो उन पर किसी किस्म की ज़्यादती का तुम्हें कोई हक नहीं।
 कोई औरत अपने घर में इख़राजात (खर्च) न करें, मगर हां अपने शोहर की इजाजत से।
 जान लो , लड़का उसकी तरफ मंसूब किया जाएगा जिसके बिस्तर पर वह पैदा हुआ हो।
 और जिस पर हराम कारी साबित हो उसकी सजा संग सारी है, और उनका हिसाब अल्लाह के ज़िम्मे।

 देखो, किसी औरत के लिए जायज नहीं कि वह अपने शोहर का माल उसकी इजाजत के बगैर किसी को दे।

 हज़रत साहब ने अपने इस पैगाम में साफ़ कर दिया कि महिलाओं पर कोई ज़ुल्म ज़्यादती ना की जाए. उनका सम्मान बरक़रार रहे. उन पर किसी तरह का ज़ुल्म ना समाज करे और ना उनके मां बाप भाई शौहर औलाद समेत कोई भी करे.

अब ये सोचने और ग़ौर करने की बात है कि क्या आज हक़ीक़त में हम और हमारा समाज आपके इस क़ाबिले तारीफ़ पैगाम -नसीहत पर कितना अमल कर रहा है?आपके पैगाम को कई शासको ने अपनाया और अपने यहां की व्यवस्था में महिलाओं को सम्मान देकर माहौल को खुशहाल किया.

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