(16 जुलाई---जन्म दिन पर विशेष)
🌹देवबन्द का उर्दू साहित्य का इतिहास अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है।नज़्म और नसर(गध और पद)दो मैदान में देवबन्द के अदीबों,कलमकारों और शायरों ने इस क़स्बे को शौहरत और सरबुलन्दी बख़्शी।में अब यह कह और लिख सकता हूँ कि----उर्दू अदब में जो मक़ाम दिल्ली,लखनऊ और हैदराबाद को मदरसे,स्कूल और दबिस्तान की शक्ल में हासिल है---वो मक़ाम देवबन्द को भी मिलना चाहिए।यहां यह बात खुले दिल से क़बूलनी चाहिए कि अदब में देवबन्द की सरबुलन्दी का सेहरा दारुल उलूम के सर बंधना चाहिए।हज़ारों शागिर्दों ने चटाई और मुसलले पर उस्ताज़ के कदमों में बैठकर वो सब ना सिर्फ हासिल किया बल्कि हक़ भी अदा किया।
---------इसी मिट्टी,इसी क़स्बे,इसी ख़मीर,इसी मजलिस-महफ़िल, इसी तरबियत से अदबी परवरिश डॉक्टर नवाज़ देवबन्दी की हुई-----जिनकी आज यौमे पैदाइश है------जिन्होंने ना सिर्फ देवबन्द का अदबी चराग़ बुझने दिया----बल्कि चराग़ से चराग़ रोशन किए।हबीब हसन वहशी,अल्लामा अनवर साबरी,मौलाना आमिर उस्मानी,सय्यद अज़हर शाह क़ैसर,सय्यद मेहबूब रिज़वी,उमर फ़ारूक़ आसिम,मुफ़्ती कफील उर रहमान निशात,हामिद तहसीन,मंज़ूर उस्मानी,सादिक़ साबरी,ताजदार ताज,हाजरा नाज़ली,अंजुम उस्मानी, अब्दुल्ला राही,उमर दराज़ ख़ान,मौलाना नदीम उल वाजदी,मौलाना नसीम अख़्तर शाह क़ैसर,डॉक्टर उबैद इक़बाल आसिम,रक़्शनदा रूही, डॉक्टर माजिद देवबन्दी,अब्दुल्ला उस्मानी यह वो चंद नाम हैं।जिन्होंने देवबन्द को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शौहरत दिलाई----वक़्त के साथ बदलाव लाज़िम है-------हर मैदान में अफ़राद का आना और जान तय है-----यही देवबन्द के साथ हुआ----अल्लामा आमिर उस्मानी और अल्लामा अनवर साबरी की वफात के बाद एक ख़ला(रिक्त स्थान)पैदा हो गया था----मगर उस ख़ला को जिस मेहनत,लगन, ख़ूबसूरती से डॉक्टर नवाज़ देवबन्दी ने पूरा किया----वो अपनी मिसाल आप है।
उनको जदीद दौर का शायर तो नही कहा जा सकता---क्यूंकि वो इस फन्नी मैदान में 40 से ज़्यादा का वक़्त गुज़ार चुके हैं----मगर बदलते कलेंडर और सरकती घड़ी की सुइयों पर किसी हद तक क़ाबू रक्खा------इसीलिए उनकी शौहरत में दिन बा दिन इज़ाफ़ा हुआ------साथ उन्होंने लड़कियों की तालीम को अपना मिशन बनाया----स्कूल,कॉलेज,ट्रेनिंग,कोचिंग सेंटर क़ायम किए----- कर रहे हैं।इन सब अमल और कामयाब काविशों ने उन्हें अलग सफ में ला खड़ा किया।।
क़ौमी सतह के अनगिनत ऐजाज़ हासिल कर चुके नवाज़ देवबन्दी ने उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी के रंग-रूप को भी बदला।TV पर एंकर की शक्ल में अपनी कामयाब हाज़री दर्ज कराई-----पहला आसमान(उर्दू) और पहली बारिश(हिंदी)उनके दो मजमुये(संकलन)आ चुके हैं।साथ ही डॉक्टर अलिफ नाज़िम की मुर्त्तिब (संकलित)किताब "ज़र्रा नवाज़ी" उनकी शख़्सियत का मुकम्मल आईना है।
जिसमे आलमी(अंतरराष्ट्रीय)सतह के 125 इल्मी-अदबी शख़्सीयात ने उन पर लिखा।जिनमे अली सरदार जाफरी,गोपाल दास नीरज,डॉक्टर बशीर बद्र,प्रो.वसीम बरेलवी,जावेद अख़्तर, डॉक्टर राहत इन्दौरवी,अनवर जलालपुरी,मुनव्वर राना,अशोक चक्रधर,जगजीत सिंह,फ़ारूक़ शैख़, मंज़ूर उस्मानी,अंजुम उस्मानी,डॉक्टर नसीम निकहत,डॉक्टर ताबिश मेहदी,मलिक ज़ादा जावेद के नाम क़ाबिले ज़िक्र हैं।
हर शायर,क़लमकार, तख़लीखकार के पास ज़िंदगी भर का बड़ा अदबी सरमाया होता है।जो उसकी शौहरत, इज़्ज़त,अज़मत का सबब बनता है-----डॉक्टर नवाज़ देवबन्दी के ख़ज़ाने में भी चंद नायाब अशआर ऐसे हैं-----जो उनकी अज़मत का सबब बने।
🌷भाई से भाई के कुछ तक़ाज़े भी हैं---सहन के बीच दीवार अपनी जगह।
🌷बद नज़र उठने ही वाली थी किसी की जानिब---अपनी बेटी का ख़्याल आया तो दिल कांप गया।
🌷गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर---धूप रहती है ना साया देर तक।
🌷मुफ़लिसी का चराग़ रोशन था----ज़िंदगी कट गई उजाले मे।
🌷बादशाहों का इंतज़ार करें----इतनी फुरसत कहाँ फकीरों को।
🌷अंजाम उसके हाथ है आग़ाज़ करके देख-----भीगे हुए परों से ही परवाज़ करके देख।
🌷जी,जनाब,शुक्रिया,ज़िंदाबाद----ये है उर्दू ज़बान का सदक़ा।
(विचार-------कमल देवबन्दी,89547 35595)
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