दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर नहीं, विवादित फतवों के लिंक पर जांच तक लगाई गई है रोक: जिला अधिकारी।
देवबंद: विश्व विख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद के कई फतवों को कथित रूप से विवादास्पद और भ्रामक बताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी जिसके बाद आयोग ने यूपी सरकार और जिलाधिकारी को नोटिस जारी करके इस संबंध में जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया था।
जिस पर शनिवार को सहारनपुर के जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने दारुल उलूम देवबंद को नोटिस जारी कर के विवादित फतवों के लिंक को जांच होने तक वेबसाइट से हटाने का आदेश दिया है।
देवबंद टाइम्स से बातचीत करते हुए जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण (NCPCR) के नोटिस पर दारुल उलूम देवबंद को शनिवार को नोटिस जारी किया गया है, जिसमें कई विवादास्पद फतवों के लिंक को जांच तक वेबसाइट से हटाने का आदेश दिया गया है, हालांकि जिलाधिकारी ने बताया कि वेबसाइट को पूर्ण रुप से बंद करने का कोई आदेश नहीं दिया गया है।
वही इस संबंध में दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी से संपर्क साधने के बावजूद बातचीत नहीं हो सकी लेकिन संस्था के अन्य जिम्मेदारों ने बताया कि वेबसाइट चालू है लेकिन कथित रूप से कई फतवों को विवादास्पद बताते हुए बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत की गई थी जिसके बाद जिलाधिकारी की तरफ से संस्था को नोटिस प्राप्त हुआ है, जिसमें उन फतवों के लिंक को जांच होने तक पब्लिक डोमिन से हटाने को कहा गया। बताया गया है कि ऐसे 9 फतवे हैं जिनका लिंक वेबसाइट से हटाया गया है।
बता दें कि दारुल उलूम देवबंद के कई फतवों को कथित रूप विवादास्पद और भ्रामक बताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी जिसके बाद आयोग ने यूपी सरकार के मुख्य सचिव और जिला अधिकारी को नोटिस जारी करके इस संबंध में जरूरी कदम उठाने की हिदायत दी थी।
शिकायतकर्ता ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण (NCPCR) को कुछ फतवों की एक सूची दी थी और कहा है कि यह फतवे भारतीय कानून के प्रावधानों के खिलाफ है जो इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर मौजूद हैं। जिस पर जिलाधिकारी ने नोटिस जारी किया है।
संस्था का कहना है कि कहा कि फतवा शरीयत की रोशनी में फतवा लेने वालों को दिया जाता है, फतवा शरीयत के मानने वालों और उस पर अमल करने वालों के लिए होता है यह कोई जबरदस्ती या थोपने वाला कदम नहीं होता है। फतवा में मसले की शरीयत की रोशनी में मात्र जानकारी दी जाती है।
समीर चौधरी।
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