8 दिसंबर जन्म दिन पर विशेष! धर्मेंद्र-----फ़िल्म व अदब की अज़ीम शख़्सियत।

8 दिसंबर जन्म दिन पर विशेष!  धर्मेंद्र-----फ़िल्म व अदब की अज़ीम शख़्सियत।
8 दिसंबर 1935 को नसराली (लुधियाना) के एक गाँव में परिषदीय विद्यालय के हेडमास्टर के घर मे जन्मे हिंदी फिल्मों के नायाब, कामयाब, हरदिलाज़िज़, अदबनवाज़ सितारे धर्मेंद्र-------ना सिर्फ रुपहले पर्दे पर लगभग 250 हिंदी फिल्मों में काम किया बल्कि अपनी ज़बान, अपने बेहतरीन अमल से----उर्दू अदब और इंसानियत की भी बेमिसाल ख़िदमत की।
ज़िंदगी के किसी भी मैदान में बड़ा बन जाना----कोई कमाल नही। आपकी लगन, मेहनत, किस्मत दुनिया की तमाम दौलत, शौहरत, बुलन्दी---आपके क़दमों में लाकर डाल सकती है।मगर आप अपनी घरेलू तहज़ीब, ख़ानदानी रिवायात, अपने इलाके के कल्चर, अपनी ज़बान को ना बदलें-----यही बड़े होने की दलील है----आज भी धर्मेंद्र शान से कहते हैं कि "उनमें से आज भी पंजाब की मिट्टी की महक ख़त्म नही हुई---
85 साल की उम्र---62 साल का फिल्मी सफर---अनगिनत हिट फिल्में, असंख्य मान-सम्मान, लाखों-करोड़ों चाहने वाले---मगर एक शख़्स अपनी तहज़ीब, अदब और रिवायात को----दिल से लगाए बैठा है और उसका इज़हार करता है----यही कामयाब होने के साथ-साथ नायाब होने की अलामत भी है।
60 के दशक में अर्जुन हिंगोरानी निर्देशित "दिल भी तेरा हम भी तेरे" से फिल्मी सफर शुरू करने वाले धर्मेंद्र ने फूल और पत्थर, काजल, अनुपमा, सत्यकाम, आया सावन झूम के, आए दिन बहार के, शोला और शबनम, मेरा गांव मेरा देश, जुगनू, राजाजानी, सीता और गीता, नया ज़माना, चुपके-चुपके,  प्रतिज्ञा शराफत, शोले, यादों की बारात, जीवन मृत्यु, समाधि, पत्थर और पायल, हुकूमत, आग ही आग, अपने, यमला पगला दीवाना जैसे सुपरहिट फिल्मों में अलग-अलग किरदारों को सिल्वर स्क्रीन पर ज़िंदगी बख्शी।
उनका फिल्मी सफर रुपहले पर्दे पर कुम कुम के साथ शुरू हुआ और नफीसा अली तक वो रोमांस करते दिखाई दिए----मीना कुमारी, वहीदा रहमान, माला सिन्हा, नूतन, मुमताज़, रेखा, रीना राय, हेमा मालिनी, वजयंती माला, ज़ीनत अमन, पुनम ढिल्लों, डिम्पल कपाड़िया, अमृता सिंह----जैसी खूबसूरत तीन पीढ़ियों की नायिकाओं के साथ वो रोमांस करते दिखे।
-----धर्मेंद्र 85 साल की उम्र पार करने के बावजूद बेइंतहा जज़्बाती और मासूम दिल सीने में रखते हैं---उन्हें जिससे मोहब्बत है---वो उसके इज़हार से चूकते नही। अदाकारी के बादशाह दिलीप कुमार और उर्दू----इन दोनों से उनका इश्क़ जग जाहिर है।
धर्मेंद्र की कामयाबी, शौहरत की बुलन्दी और उस पर ठहराव-----उनकी मेहनत, संघर्ष और सब्र का फल है----इसीलिए वो आज भी लाखों दिलों में धड़कन की तरह धड़कते हैं।
"में कई सितारों को जानता हूँ बचपन से------जहां भी जाऊं मेरे साथ-साथ चलते हैं"।-----शुभकामनाओं के साथ-------

कमल देवबन्दी (लेखक,समीक्षक)

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