अच्छे दिन: रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के सम्मान, सरकार की वोट बैंक साधने की कोशिश?

अच्छे दिन: रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के सम्मान, सरकार की वोट बैंक साधने की कोशिश?
जब से केंद्र में भाजपा की सरकार आई है तो एक नारा मुसलसल कानों में गूंज रहा है अच्छे दिन--- अच्छे दिन--- अच्छे दिन ,बढ़ती महंगाई अराजकता ,द्वेष ,एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की ख़्वाहिश और कोशिश ने लोगों को मायूस किया है। मगर कुछ लोग हैं जिनके वाक़ई अच्छे दिन आ गए जिन में एक नाम रजनीकांत साहब का है। जिनको अभिनय के क्षेत्र में दादा साहब फाल्के अवार्ड देकर अच्छे दिनों को मात्र महसूस कराने की एक नाकाम कोशिश केंद्र सरकार ने की है।
रजनीकांत की साउथ और हिंदी फिल्मों में एक पहचान एक्शन हीरो के रूप में है। चेहरे मोहरे से मामूली रजनीकांत पर्दे के ऊपर सिर्फ लड़ते -भिड़ते दिखाई देते हैं उनका चेहरा "इमोशनल लेस "है। और वह कहीं से भी एक अभिनेता के रूप में अपने आप को गत 30-35 वर्षों में साबित नहीं कर सके हैं।
वर्ष 1985 के आसपास निर्देशक टी रामा राव के निर्देशन में अमिताभ बच्चन के साथ" अंधा क़ानून" में उन्होंने हिंदी फिल्मों में पदार्पण किया था ।फिल्म सफल रही थी मगर फिल्म की सफलता का सारा क्रेडिट अमिताभ बच्चन के हिस्से में आया था। उसके बाद रजनीकांत हिंदी फिल्मों में कोई भी एक बड़ी कामयाबी फिल्म नहीं दे सके उनकी फिल्में ऐसी ज़रूर हैं जो साउथ से डब होकर यहां पर आईं और उन्होंने सफलता अर्जित की है। साउथ में उनकी पूजा होती है उनके फिल्मी पोस्टरों को दूध से नहलाया जाता है दर्शकों की आज्ञा के बगैर कोई टॉकीज उनकी फिल्म को उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।
मगर एक अभिनेता के तौर के ऊपर उनकी झोली बिल्कुल खाली है। दादा साहेब फाल्के जैसे सम्मान का कोई ना कोई पैमाना तो सरकार और उसके मातहत काम करने वाली संस्थाओं ने निश्चित रूप से रखा होगा ।यह पुरस्कार पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित और पेंठ बनाने वाला है।
यह बदनसीबी ही कही जाएगी अब सत्ता में बैठे लोग हर चीज़ के अंदर वोट तलाश कर रहे हैं और मान सम्मान और पुरस्कारों तक की गरिमा को दावँ पर लगा रहे हैं।
अगर रजनीकांत जैसे नॉन एक्टर और इमोशनल लेस चेहरे को केंद्र सरकार दादा साहेब फाल्के जैसा सम्मानित सम्मान उनकी झोली में डाल सकती है। तो फिर राज कुमार, राजेंद्र कुमार, धर्मेंद, सुनील दत्त, राजेश खन्ना, जितेंद्र, नाना पाटेकर, नसरुद्दीन शाह, फारुक शैख़, मीना कुमारी, हेमा मालिनी, रेखा, मुमताज़,वैजयंती माला और बहुत से लोग इस सम्मानित सम्मान से महरूम क्यों है।

इन सभी सितारों ने शोहरत, दौलत और अभिनय के क्षेत्र में भरपूर कामयाबी हासिल की यह निर्माता भी रहे, निर्देशक भी रहे। इन्होंने समाज सेवा भी की, राजनीति में भी रहे ।लेकिन आज तक यह सितारे इस बड़े सम्मान से मेहरूम क्यों हैं ----?।अफसोस किया जाना चाहिए और निंदा की जानी चाहिए इतने बड़े सम्मानित पुरस्कारों को वर्तमान की सरकारें बिल्कुल रेवड़ी और मूंगफली की तरह बांट रही है।

------कमल देवबन्दी (समीक्षक)

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