मायावती ने माना दलित वोट भाजपा को हुआ ट्रांसफर, अपनी हार के लिए मुसलमानों को भी ठहराया जिम्मेदार।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा के गुरुवार को आए नतीजों में प्रदेश की राजनीति में पिछले तीन दशकों से मुख्य भूमिका में रहने वाली बसपा ने इस बार काफी निराशाजनक प्रदर्शन किया है, जहां बसपा को एक ही सीट पर संतोष करना पड़ा है वहीं बसपा के वोट परसेंटेज में काफी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है, यह पहली बार है जब बसपा के बेस वोट में इतनी बड़ी गिरावट दर्ज हुई है।
बसपा के निराशाजनक प्रदर्शन पर मायावती ने मीडिया के सामने शुक्रवार को अपनी बात रखी और कहा कि मुस्लिमों ने उनका साथ नहीं दिया जबकि इस बार दलितों ने भी उन्हें निराश किया है जिसके कारण बसपा बिछड़ गई है लेकिन हमने उम्मीद नहीं छोड़ी है हम जनता के बीच रहकर काम करेंगे और आगे बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
मायावती ने शुक्रवार सुबह लखनऊ में कहा कि बसपा को यदि मुस्लिम और दलित वोट मिल जाता तो भाजपा की हार हो जाती। उन्होंने ने कहा यह चुनाव हमारे लिए एक सीख की तरह से है। बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार किया गया। मैं बसपा के समर्थकों से कहना चाहूंगी कि हिम्मत नहीं हारनी है और लगे रहना है। बाबासाहेब के अनुयायी कभी हिम्मत नहीं हार सकते हैं। मैं कहना चाहूंगी कि अब बुरा वक्त खत्म होने वाला है। हमने जीजान से प्रयास किया और उसके बाद भी यह नतीजा आया है तो फिर इससे बुरा क्या हो सकता है।
मायावती ने साफ तौर पर माना कि बसपा का दलित वोट बड़े पैमाने पर भाजपा को ट्रांसफर हो गया और उसी के चलते उसे बड़ी जीत मिल गई। मायावती ने कहा, 'इस बार चुनाव में मुसलमानों का वोट एकतरफा सपा की ओर जाता दिखा। ऐसे में मेरे अपने समाज को छोड़कर बड़ी संख्या में हिंदू समाज के लोगों ने भाजपा को ही वोट दे दिया ताकि सपा का गुंडाराज न आ सके।' उन्होंने बसपा की इस हार की तुलना 1977 में कांग्रेस की हालत से की। उन्होंने कहा कि ऐसे दौर में हमें हताश होने की बजाय भविष्य के लिए प्रयास करने चाहिए। हमें बाबासाहेब के जीवन संघर्ष को याद करते हुए काम करना होगा। दिलचस्प बात यह है कि मायावती ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि गैर-जाटव दलित वोटों का आधार बसपा से खिसका है और उसका बड़ा हिस्सा भाजपा के खेमे में चला गया है। यही वजह है कि उन्होंने खुलकर कहा कि मेरे अपने समाज के अलावा हिंदू समाज की अन्य जातियों का वोट सपा के गुंडों के डर से भाजपा को ट्रांसफर हो गया।
बता दें कि 2007 में बहुजन समाज पार्टी अपने दम पर उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई थी। 2017 में बीएसपी का वोट शेयर 22 फ़ीसदी था जो इस बार कम होकर 12.8% हो गया है।
पंजाब में बीएसपी का शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन था. बीएसपी को पंजाब में एक सीट मिली है और वोट शेयर 1.7% रहा. पंजाब में भारत के सभी राज्यों की तुलना में दलितों का वोट शेयर सबसे ज़्यादा है।चुनाव के दौरान भी बीएसपी कैंपेन से बाहर रही थी।
यूपी में बीजेपी का वोट शेयर 2017 में 39.7% था जो इस बार के चुनाव में बढ़कर 42% हो गया है। कहा जा रहा है कि बीएसपी का दलित वोट बीजेपी में शिफ़्ट किया है, 2007 में यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 206 सीटों पर जीत मिली थी।
कौन है बसपा में चेतक बीएसपी का अकेला विधायक।
उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में बसपा अभी तक मात्र एक सीट जीत पाई है। बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक और बसपा विधानमंडल दल का नेता उमाशंकर सिंह जीत गए हैं। वे बसपा जीतने वाले बसपा के एक मात्र उम्मीदवार हैं। उमाशंकर बलिया के रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और लगातार दो बार, 2012, 2017 में जीत दर्ज कर चुके हैं। वे ठेकेदार भी हैं और संपत्ति के मामले में उनका नाम प्रदेश के टॉप 10 विधायकों में आता है। 2012 में जब वे विधायक चुने गये तब उनके खिलाफ एडवोकेट सुभाष चंद्र सिंह ने 18 दिसंबर, 2013 को शपथ पत्र देकर लोकायुक्त संगठन में शिकायत की, की कि वे विधायक होने के बाद भी लोक निर्माण विभाग से सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण का कार्य कर रहे हैं। मामले की जांच तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने की। जांच में उमा शंकर दोषी पाये गये।
राज्यपाल ने उमाशंकर सिंह के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाते हुये 29 जनवरी, 2015 को उन्हें विधान सभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया। इस फैसले के खिलाफ उमाशंकर हाईकोर्ट गए, पर 28 मई 2016 को हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को प्रकरण में खुद जांच कर राज्यपाल को अवगत कराने का आदेश दिया। इसके बाद 14 जनवरी 2017 को उनकी विधायकी खत्म कर दी गई। इसी साल विधानसभा चुनाव होते हैं और वे बसपा से एक बार फिर विधायक चुने जाते हैं।
DT Network
0 Comments